मंगलवार, 28 अक्टूबर 2008
दिवाली
आज दिवाली का दिन है. हिंदू दर्म में, इस दिन सबसे पवित्र है. हर साल इस दिन हिंदू दर्म के लिए एक नया साल शुरू होती है. बहुत साल पहले राम, सीता, और लक्ष्मण अयोध्या से वापस आए. और आज, हम इस कुशी मानाने के लिए दिवाली मनाते हैं. मेरी परिवार बहुत परंपरा है दिवाली के लिए. हर साल हम सब एक सात लक्ष्मी पूजा करते है. हम इमान भी देते है और पटाखे भी जिलाते है. हम मिटा भी बदलते हैं. जब हम छोटे थे, पूजा के बाद हम बच्चे ने दस कमैनादमंट्स ने पदे. हम बच्चे ने बोले की हम दिवाली क्यों मानते है. हम घर भी साफ़ करते और नया कपड़े पहनते है. हम दिया भी जिलाते है. दिवाली पेसे का दिन भी होती है और हम लोटरी में पेसे डालते है. दिवाली मेरी सबसे पसंदीदा दिन है.
सोमवार, 27 अक्टूबर 2008
कम्पयूटर का ज़माना
आज के जमाने मे कम्पयूटर और इन्टरनेट के बिना जीना बहुत मुश्किल हो गया है। सुबह उठते ही लोग कम्पयूटर पर इन्टरनेट के ज़रिए इलेक्ट्रॉनिक मेल देखते हैं। पुराने दूरभाष की जगह नए ‘चल दूरभाष’ ने ले ली है। ये चल दूरभाष असल मे छोटे कम्पयूटर हैं। लोग इनके द्वारा इन्टरनेट पर जा सकते हैं, इनपर गाने सुन सकते हैं, और इनका कैमरा भी इस्तेमाल कर सकते हैं। गाड़ियों के अंजन मे भी कम्पयूटर होते हैं जो ईंधन के प्रवाह पर नियंत्रण रखते हैं, ताकि अंजन की ईंधन क्षमता बढ़े। पाठशालाओं और विश्वविद्यालयों के छात्र कम्पयूटर के बिना काम चला ही नही सकते। आज कल परियोजना के लिए विज्ञापन ढूंढने के लिए पुस्तकालय का कम और इन्टरनेट का ज़्यादा प्रयोग होता है। गृहकार्य भी ज़्यादातर कम्पयूटर पर ही किया जाता है। यहाँ तक कि हिंदी भी कम्पयूटर पर लिखी जाती है। मुझे याद है कि जब मै 8-10 साल का था, ये सब दूर की बातें लगती थी। तब कम्पयूटर व्यापार के लेख और बच्चों के मनोरजन के लिए इस्तेमाल किए जाते थे। आज, यदि कम्पयूटर का ज्ञान न हो, तो नौकरी मिलना भी मुश्किल हो जाता है। हम सचमुच कम्पयूटर के ज़माने मे प्रवेश कर चुके हैं।
रविवार, 26 अक्टूबर 2008
दीपावली
बचपन से ही दीपावली का त्योहार मेरा मनपसंद त्योहार रहा है। रामायण के मुताबिक इसी दिन को श्री रामचंद्र जी अपना चौदह वर्ष का बनवास पूरा करके अयोध्या वापस लौटे। अयोध्या के वासियों ने उनके लौटने की खुशी मे जगह-जगह दीप जलाएं। वह रात अमावस्या की रात थी, परन्तु दीपों के कारण अयोध्या के हर कोने मे रोशनी थी। इसी कारण दीपावली दीपों का त्योहार माना जाता है।
तब से यह त्योहार, प्रतिवर्ष, नवंबर या अक्तूबर मे अमावस्या की रात को मनाया जात है। लोग इस दिन को अपने घरों की सफाई करते हैं, नए कपड़े पहन्ते हैं, अपने घरों को दीपों से उज्जवल करते हैं, और पटाखे भी जलाते हैं। हिंदू धर्म के लोग शाम को लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा भी करते हैं। माना जाता है कि धन की देवी लक्ष्मी जी की पूजा करने से साल मे धन की कोई कमी नही होगी।
ऐन आर्बर मे भारतीय छात्र संगठन प्रतिवर्ष दीपावली मनाता है। मिशिगन यूनियन के बाहर बहुत से लोग फुलझड़ियों को जलाते हैं। कुछ छात्र नाटक और संगीत का प्रदर्शन करते हैं। अंत मे सभी लोग मिलजुलकर भारतीय खाना खाते हैं। परदेस मे रहकर भारत जैसा माहौल देखकर दिल बहल जाता है।
तब से यह त्योहार, प्रतिवर्ष, नवंबर या अक्तूबर मे अमावस्या की रात को मनाया जात है। लोग इस दिन को अपने घरों की सफाई करते हैं, नए कपड़े पहन्ते हैं, अपने घरों को दीपों से उज्जवल करते हैं, और पटाखे भी जलाते हैं। हिंदू धर्म के लोग शाम को लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा भी करते हैं। माना जाता है कि धन की देवी लक्ष्मी जी की पूजा करने से साल मे धन की कोई कमी नही होगी।
ऐन आर्बर मे भारतीय छात्र संगठन प्रतिवर्ष दीपावली मनाता है। मिशिगन यूनियन के बाहर बहुत से लोग फुलझड़ियों को जलाते हैं। कुछ छात्र नाटक और संगीत का प्रदर्शन करते हैं। अंत मे सभी लोग मिलजुलकर भारतीय खाना खाते हैं। परदेस मे रहकर भारत जैसा माहौल देखकर दिल बहल जाता है।
रविवार, 19 अक्टूबर 2008
विज्ञान और मै
बचपन से ही मुझे विज्ञान मे बहुत रूची थी। मै घर मे रखी बिजली से चलने वाली मशीनों को पेंचकस से खोलकर उनके अंदरूनी हिस्से को समझने की कोशिश करता था। अक्सर, मै खराब मशीनों को भी ठीक कर देता।
हमारे पाठशाला मे प्रतिवर्ष ‘साइंस डे’ मनाया गया। ‘साइंस डे’ 28 फरवरी को मनाया जाता है। 1928 मे इस दिन पर सी. वी. रमन नाम के वैज्ञानिक ने दुनिया को अपनी एक महत्त्वपूर्ण खोज के बारे मे बताया। इसी खोज के लिए उन्हें 1930 मे नोबेल पुरस्कार मिला।
‘साइंस डे’ पर हमारे पाठशाला के सभी विद्यार्थी अपने-अपने अविष्कारों का प्रदर्शन करते थे। मैने छ्ट्टी कक्षा मे अंधे लोगों के लिए कलम बनाई। वह कलम स्याही के बजाय ऊन पे चलती थी। कागज़ के बजाए ‘वेलक्रो’ पर लिखना पड़ता था ताकि ऊन वेलक्रो पर चिपक सके। नेत्रहीन लोग चिपके हुए ऊन को महसूस करके शब्दों का आकार जान सकते थे।
इसी आविष्कार के लिए मुझे उस वर्ष प्रथम पुरस्कार मिला। मैने वह कलम दिल्ली के ‘ब्लाईन्ड स्कूल’ को दान कर दिया। इस आविष्कार के साथ मैने इंजीनियरिंग की दुनिया मे अपनी यात्रा शुरू करी।
हमारे पाठशाला मे प्रतिवर्ष ‘साइंस डे’ मनाया गया। ‘साइंस डे’ 28 फरवरी को मनाया जाता है। 1928 मे इस दिन पर सी. वी. रमन नाम के वैज्ञानिक ने दुनिया को अपनी एक महत्त्वपूर्ण खोज के बारे मे बताया। इसी खोज के लिए उन्हें 1930 मे नोबेल पुरस्कार मिला।
‘साइंस डे’ पर हमारे पाठशाला के सभी विद्यार्थी अपने-अपने अविष्कारों का प्रदर्शन करते थे। मैने छ्ट्टी कक्षा मे अंधे लोगों के लिए कलम बनाई। वह कलम स्याही के बजाय ऊन पे चलती थी। कागज़ के बजाए ‘वेलक्रो’ पर लिखना पड़ता था ताकि ऊन वेलक्रो पर चिपक सके। नेत्रहीन लोग चिपके हुए ऊन को महसूस करके शब्दों का आकार जान सकते थे।
इसी आविष्कार के लिए मुझे उस वर्ष प्रथम पुरस्कार मिला। मैने वह कलम दिल्ली के ‘ब्लाईन्ड स्कूल’ को दान कर दिया। इस आविष्कार के साथ मैने इंजीनियरिंग की दुनिया मे अपनी यात्रा शुरू करी।
भारत की अंतरिक्ष यात्रा
भारत के पहले प्रधानमन्त्री, जवाहरलाल नेहरु की राय मे अंतरिक्ष तक पहुँचने का ज्ञान हमारे देश की प्रगति के लिए ज़रूरी था। उन्होने डाँ. विकरम साराभाई को भारत की अंतरिक्ष संस्था को स्थापित करने का उद्देश दिया।
डाँ. विकरम साराभाई ने भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्थापना करी। उनके नेतृत्व के समय भारत ने राकेटों को अंतरिक्ष मे भेजने की कला विज्ञान हासिल करी। 1979 मे, रूसी राकेट द्वारा, भारत की पहली सेटेलाईट ’आर्यभट’ अंतरिकक्ष तक पहुँची। 1980 मे, ‘सेटेलाईट लाँच वेहिकल’ नामित देशी राकेट पर ‘रोहिनी’ नाम की सेटेलाईट अंतरिक्ष तक पहुँची। इस घटना के कारण, भारत का नाम वैज्ञानिको की बिरादरी मे प्रसिद्ध हुआ।
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन ने 1980-2008 के बीच बहुत प्रगति की है। पिछले दशक मे इसी संगठन ने इसराइल और इटेली की सेटलाईटों को ‘पी.एस.एल.वी’ और ‘जी.एस.एल.वी’ राकेट द्वारा अंतरिक्ष मे भेजा। भारत के ‘पी.एस.एल.वी’ और ‘जी.एस.एल.वी’ राकेट दुनियाँ के सबसे कामियाब राकेटों की सूची मे शामिल हैं।
22 अक्तूबर 2008 को भारत ‘जी.एस.एल.वी’ राकेट द्वारा एक सेटलाइट चंद्रमा की ओर भेजने वाला है। यदि यह मिशन कामियाब हो, तो भारत उन उच्च वर्ग देशों की सूची मे शामिल होगा, जिनके पास चाँद तक पहुँचने का ज्ञान है।
डाँ. विकरम साराभाई ने भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्थापना करी। उनके नेतृत्व के समय भारत ने राकेटों को अंतरिक्ष मे भेजने की कला विज्ञान हासिल करी। 1979 मे, रूसी राकेट द्वारा, भारत की पहली सेटेलाईट ’आर्यभट’ अंतरिकक्ष तक पहुँची। 1980 मे, ‘सेटेलाईट लाँच वेहिकल’ नामित देशी राकेट पर ‘रोहिनी’ नाम की सेटेलाईट अंतरिक्ष तक पहुँची। इस घटना के कारण, भारत का नाम वैज्ञानिको की बिरादरी मे प्रसिद्ध हुआ।
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन ने 1980-2008 के बीच बहुत प्रगति की है। पिछले दशक मे इसी संगठन ने इसराइल और इटेली की सेटलाईटों को ‘पी.एस.एल.वी’ और ‘जी.एस.एल.वी’ राकेट द्वारा अंतरिक्ष मे भेजा। भारत के ‘पी.एस.एल.वी’ और ‘जी.एस.एल.वी’ राकेट दुनियाँ के सबसे कामियाब राकेटों की सूची मे शामिल हैं।
22 अक्तूबर 2008 को भारत ‘जी.एस.एल.वी’ राकेट द्वारा एक सेटलाइट चंद्रमा की ओर भेजने वाला है। यदि यह मिशन कामियाब हो, तो भारत उन उच्च वर्ग देशों की सूची मे शामिल होगा, जिनके पास चाँद तक पहुँचने का ज्ञान है।
मंगलवार, 14 अक्टूबर 2008
"दादा"
कुछ लोग मानते थे कि उसकी एक सबसे बड़ी कमी थी की वह उठती हुई गेंद को खेल नहीं सकता था और कुछ मानते थे कि "आफ साइड" पर वह भगवान के सामान था अगर आप जानते हो कि मैं किसके बारे में बात कर रहा हूँ तो अच्छी बात है लेकिन अगर आप अपने बाल खरोचकर उत्तर का इंतज़ार कर रहे हैं तो सुन लो यह महान चरित्र जिसके बारे में मैं बात कर रहा हूँ उसका नाम है -सौरव चंडीदास गांगुली आज भारत में इनको प्यार सा 'दादा' कहके पुकारा जता है
सन दो हज़ार में "मैच फिक्सिंग" की समस्या के बाद सौरव भारत क्रिकेट टीम के कपतान बने और अगले ४ साल में जो इन्होंने भारतीय क्रिकेट के लिए किया , शायद किसी भी कपतान ने नही किया होगा कपिल देव ने इंडिया को १९८३ मैं विश्व कप जिताया होगा और भारत का नाम रोशन किया होगा लेकिन जितनी उन्नति भारतीय टीम ने २००० से लेकर २००५ के बीच की , शायद बहुत साल के लिए फिर से नहीं देखि जायेगी आप पूछेंगे फिर- इनमे क्या खासियत थी की सिर्फ़ अपने पहले मैच के चार साल बाद वे कपतान बने? सौरव दादा की सबसे ख़ास बात यह थी कि उन्होंने अपनी टीम में एक नया एहसास दिलाया उनका अपने ही खिलाड़ियों में विशवास ने सबको दिखा दिया कि शायद भारत कि टीम अभी क्रिकेट की दुनिया में अपना नाम रोशन कर सकती है इसी विशवास को लेकर, सौरव भारत को २००३ में विश्व कप की आखरी स्थर तक लेकर गए इसके इलावा, उन्होने पाकिस्तान को दोनों भारत और पाकिस्तान में पूर्ण ढंग से हराया
आज अफ़सोस की बात यह है कि दादा अभी ३६ साल के हो गए हैं और पिछले डेढ़ सालों में वे टीम के भीतर-बाहर रहे हैं उन्होने २ हफ्ते पहले कह दिया कि अभी चलती टेस्ट सीरीज़ के बाद वे क्रिकेट से पीछे हट रहे हैं असल में यह एक उदास दिन होगा क्योंकि मेरी राय में वे क्रिकेट के सभी खिलाडयों, भूतकाल या वर्तमान काल में, में से एक सबसे सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी थे
सन दो हज़ार में "मैच फिक्सिंग" की समस्या के बाद सौरव भारत क्रिकेट टीम के कपतान बने और अगले ४ साल में जो इन्होंने भारतीय क्रिकेट के लिए किया , शायद किसी भी कपतान ने नही किया होगा कपिल देव ने इंडिया को १९८३ मैं विश्व कप जिताया होगा और भारत का नाम रोशन किया होगा लेकिन जितनी उन्नति भारतीय टीम ने २००० से लेकर २००५ के बीच की , शायद बहुत साल के लिए फिर से नहीं देखि जायेगी आप पूछेंगे फिर- इनमे क्या खासियत थी की सिर्फ़ अपने पहले मैच के चार साल बाद वे कपतान बने? सौरव दादा की सबसे ख़ास बात यह थी कि उन्होंने अपनी टीम में एक नया एहसास दिलाया उनका अपने ही खिलाड़ियों में विशवास ने सबको दिखा दिया कि शायद भारत कि टीम अभी क्रिकेट की दुनिया में अपना नाम रोशन कर सकती है इसी विशवास को लेकर, सौरव भारत को २००३ में विश्व कप की आखरी स्थर तक लेकर गए इसके इलावा, उन्होने पाकिस्तान को दोनों भारत और पाकिस्तान में पूर्ण ढंग से हराया
आज अफ़सोस की बात यह है कि दादा अभी ३६ साल के हो गए हैं और पिछले डेढ़ सालों में वे टीम के भीतर-बाहर रहे हैं उन्होने २ हफ्ते पहले कह दिया कि अभी चलती टेस्ट सीरीज़ के बाद वे क्रिकेट से पीछे हट रहे हैं असल में यह एक उदास दिन होगा क्योंकि मेरी राय में वे क्रिकेट के सभी खिलाडयों, भूतकाल या वर्तमान काल में, में से एक सबसे सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी थे
परीक्षा
पिछले हफ्ते मुझे बहुत काम थी. सोमवार को मुझे दो परिक्षे थे. एक बयोसैकोलोगी में था और दूसरा रिसर्च सैकोलोगी में था. दोनों बहुत मुश्किल थे. मंगलवार को मुझे एक और परीक्षा था स्य्कोपैतोलोगी में. वह भी मुश्किल था. बुधवार को मुझे एक और परीक्षा था लेकिन वह इतने मुश्किल नहीं था. गुरुवार को मुझे एक कागज करनी थी रिसर्च सैकोलोगी में. फिर शुक्रवार में मुझे बीमार हो गयी, और शानिवार और रविवार मेने घर गयी. इस लिए पिछले हफ्ते मुझे इतने नींद नहीं कर सकी, और बहुत पदा. लेकिन, इस हफ्ते मुझे बहुत थोडी कम है और मुझे घर चल रही है.
सोमवार, 13 अक्टूबर 2008
सत्य
भारत देष में किसी समय एक राजा राज्य करते थे उनका नाम हरिषचन्द्र था उन्होंने बचपन से ही सत्य धर्म का पालन किया था एक समय देवताओं में आपस में बातचीत हो रही थी कि भारत में इस समय एक राजा राज्य कर रहा है जोकि सत्य धरम का पूर्णतया पालन कर रहा है एक देव को आष्चर्य हुआ उसने राजा की परीक्षा लेने की ठान ली उसने एक ब्राहम्ण का वेष धर कर राजा के पास आया और राजा से संकल्प कर दान देने का अनुरोध किया और पूरा राज्य दे दिया उसके बाद देव ब्राहम्ण ने शमषान में राजा को नौकरी दिलवा दी और रानी को शमषान के बगल में एक ब्राम्हण के यहां नौकरी दिलवा दी एवं राजा को कहा जो भी यहां शमषान में आयेगा उससे कर के रूप में एक कफन कपड़ा राज्य के लिए लेना होगा उसी शाम लड़के को साँप ने डस लिया और मृत्यु को प्राप्त हो गया। रानी बिलखते हुए उसी शमषान में पुत्र को लेकर दाह संस्कार के लिए पहुंचती है और दाह संस्कार के लिए कहती है परन्तु राजा हरिषचन्द्र ने कहा कि दाह संस्कार से पूर्व तुम्हे एक कफन राज्य के लिए देना होगा रानी बिलखते हुए कहती है कि मेरे पास तो कुछ भी नहीं है उस पर राजा हरिषचन्द्र कहते हैं कि मैं अपने सत्य धर्म से पीछे नहीं हट सकता तुम्हे एक कफन का कपड़ा लाना ही होगा। तब अन्त में रानी अपनी साड़ी से आधी साड़ी फाड़कर देती है। इस प्रकार राजा हरिषचन्द्र की सत्यता पर देव प्रसन्न हो गया और उसने राजा का राज पाठ वापस देकर और बच्चे को जिन्दा करके वापस चला गया।
गाय-बैल
गाय एक घरेलू एवं लाभप्रद चार पैर का जानवर है जिसका हमें प्रातः एवं सांयकाल दूध प्राप्त होता है जो कि जीवन के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण एवं स्वास्थ्य रक्षक है। गाय प्रायः एक सीधा जानवर है। गाय का बछड़ा जो कि बड़ा होने पर बैल बनता है वह गांव में किसानों के हल चलाने के लिये बहुत ही उपयोगी है तथा किसानों की बैलगाड़ी भी चलाने के उपयोग में लाया जाता है, इसका भोजन घास-फूस होता है जो किसानों को सहजता से प्राप्त होता है और उसका कोई मूल्य नहीं देना पड़ता है। धान की कुटाई में भी बैलों का उपयोग किया जाता है।
कुछ तेली भी बैलों का उपयोग तेल बनाने में लाते हैं गांव में कोल्हू बैठाये जाते हैं जिसमें कोई बिजली की जरूरत नहीं पड़ती है इससे बिजली की भारी बचत होती है तथा तेल भी शुद्ध निकलता है एवं प्रोटीन भी शत प्रतिषत बना रहता है।
बैलों का उपयोग किसान कुऐं से पानी निकलाने के उपयोग में भी लाते हैं इस प्रकार गाय एवं बैल दोनों ही देष के लिये बहुत ही उपयोगी जानवर हैं।
कुछ तेली भी बैलों का उपयोग तेल बनाने में लाते हैं गांव में कोल्हू बैठाये जाते हैं जिसमें कोई बिजली की जरूरत नहीं पड़ती है इससे बिजली की भारी बचत होती है तथा तेल भी शुद्ध निकलता है एवं प्रोटीन भी शत प्रतिषत बना रहता है।
बैलों का उपयोग किसान कुऐं से पानी निकलाने के उपयोग में भी लाते हैं इस प्रकार गाय एवं बैल दोनों ही देष के लिये बहुत ही उपयोगी जानवर हैं।
शनिवार, 11 अक्टूबर 2008
गुजरात, 2002
सन 2002 मे गुजरात मे हुए हिंदु-मुसलमान दंगे हमारे देश पर धब्बा बनकर रह गए हैं। सरकारी रिकार्ड के मुताबिक फरवरी एवं मई के बीच 1044 लोग मारे गए, परन्तु बहुत लोग मानते हैं कि इससे कई ज़्यादा लोग उस फसाद मे अपनी जान खो बैठे।
ये सब फरवरी, 2002 को गोधरा नाम के शहर मे शुरु हुआ। उस दिन 58 हिंदु कारसेवक साबरमती एक्स्प्रेस नामित रेल गाड़ी मे आग के कारण मारे गए। ऐसा आरोपित किया गया है कि यह आग कुछ मुसलमानों द्वारा आरंभिक की गई, परन्तु आज तक यह बात अदालत मे साबित नही हो पाई है।
रेल गाड़ी के जलने की खबर तेज़ी से गुजरात मे फैली। इस हादसे के कारण हिंदु और मुसलमान सम्प्रदाय के लोगों के बीच तनाव पैदा हुआ। अगले दिन अहमदाबाद में हिंदुओं ने जुलूस निकाला जिसका नरेंद्र मोदी की सरकार ने पूरी तरह समर्थन किया। इसी जुलूस के दौरान दंगे शुरु हुए। गुससे से गर्म हिन्दु लोगों ने मुसलमानों की हत्या करी। इसके कारण मुसलमानों मे भी गुससा बढ़ा और उन्होंने हिन्दुओं पर वार किया।
बहुत से पुलिस अफसरों ने आरोप किया है कि नरेंद्र मोदी ने उनको मुसलमानों की मदद न करने का संदेश दिया। जिन अफसरों ने इस आदेश का विरोध किया, उनका तुरंत ट्रांस्फर कर दिया गया। बी जे पी सरकार से दबाव की वजह से, इस बात को ज़्यादा महत्त्व नही दिया गया।
इसके बावजूद, नरेन्द्र मोदी ने अपने पद से इसतीफा नही लिया। हैरानी की बात यह है कि गुजरात के लोगों ने उनको दोबारा अपना मुख्यमंत्री चुना, और उस चुनाव के बीच पूरा भारत चुप रहा। हमारे देश को क्या हो गया है?
ये सब फरवरी, 2002 को गोधरा नाम के शहर मे शुरु हुआ। उस दिन 58 हिंदु कारसेवक साबरमती एक्स्प्रेस नामित रेल गाड़ी मे आग के कारण मारे गए। ऐसा आरोपित किया गया है कि यह आग कुछ मुसलमानों द्वारा आरंभिक की गई, परन्तु आज तक यह बात अदालत मे साबित नही हो पाई है।
रेल गाड़ी के जलने की खबर तेज़ी से गुजरात मे फैली। इस हादसे के कारण हिंदु और मुसलमान सम्प्रदाय के लोगों के बीच तनाव पैदा हुआ। अगले दिन अहमदाबाद में हिंदुओं ने जुलूस निकाला जिसका नरेंद्र मोदी की सरकार ने पूरी तरह समर्थन किया। इसी जुलूस के दौरान दंगे शुरु हुए। गुससे से गर्म हिन्दु लोगों ने मुसलमानों की हत्या करी। इसके कारण मुसलमानों मे भी गुससा बढ़ा और उन्होंने हिन्दुओं पर वार किया।
बहुत से पुलिस अफसरों ने आरोप किया है कि नरेंद्र मोदी ने उनको मुसलमानों की मदद न करने का संदेश दिया। जिन अफसरों ने इस आदेश का विरोध किया, उनका तुरंत ट्रांस्फर कर दिया गया। बी जे पी सरकार से दबाव की वजह से, इस बात को ज़्यादा महत्त्व नही दिया गया।
इसके बावजूद, नरेन्द्र मोदी ने अपने पद से इसतीफा नही लिया। हैरानी की बात यह है कि गुजरात के लोगों ने उनको दोबारा अपना मुख्यमंत्री चुना, और उस चुनाव के बीच पूरा भारत चुप रहा। हमारे देश को क्या हो गया है?
पर्यावरण
तीस साल पहले जब अमरीकी अंतरिक्ष यात्री चाँद को गए, तो वे पृथ्वी को अंतरिक्ष से देखने वाले पहले मानव बने। जब वे चाँद से वापस लौटे, तो उनसे पूछा गया कि पृथ्वी को अंतरिक्ष से देखकर उनहे कैसा महसूस हुआ। उन सभी ने एक ही जवाब दिया, कि पृथ्वी अंतरिक्ष के प्रतिकूल वातावरण मे नाज़ुक हीरे के समान है, और मानव जाति को पृथ्वी के पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए।
आज, उस घटना के तीस साल बाद, हम इस पृथ्वी के नाज़ुक पर्यावरण को बिना सोचे समझे नष्ट करते जा रहे हैं। प्रतिदिन, लकड़, काग़ज़, गोंद आदि उत्पादों को बनाने के लिए, हज़ारों वृक्षों को काटा जाता है। इसके कारण, बहुत से जीव-जन्तुओ का नाश होता है।
गाड़ियों एवं कारखानों मे ईंधन के उपयोग की वजह से दुनिया मे प्रदूषण बहुत फैल रहा है। इस प्रदूषण के कारण, पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। अब उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव मे बर्फ पिघल रही है और अगले 20-30 सालों मे समुद्री तटों पर स्थित शहरों मे बाढ़ आने की आशंका बढ़ रही है। बढ़ते तापमान की वजह से दुनियाभर मे आंधियों की आवृत्ति भी बढ़ रही है।
हम सभी पृथ्वी को चोट पहुँचा रहे हैं। हमारे कर्मों की वजह से, इस खूबसूरत दुनिया का धीरे-धीरे नाश हो रहा है। अब इस नाज़ुक हीरे की रक्षा करने का समय आ गया है।
आज, उस घटना के तीस साल बाद, हम इस पृथ्वी के नाज़ुक पर्यावरण को बिना सोचे समझे नष्ट करते जा रहे हैं। प्रतिदिन, लकड़, काग़ज़, गोंद आदि उत्पादों को बनाने के लिए, हज़ारों वृक्षों को काटा जाता है। इसके कारण, बहुत से जीव-जन्तुओ का नाश होता है।
गाड़ियों एवं कारखानों मे ईंधन के उपयोग की वजह से दुनिया मे प्रदूषण बहुत फैल रहा है। इस प्रदूषण के कारण, पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। अब उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव मे बर्फ पिघल रही है और अगले 20-30 सालों मे समुद्री तटों पर स्थित शहरों मे बाढ़ आने की आशंका बढ़ रही है। बढ़ते तापमान की वजह से दुनियाभर मे आंधियों की आवृत्ति भी बढ़ रही है।
हम सभी पृथ्वी को चोट पहुँचा रहे हैं। हमारे कर्मों की वजह से, इस खूबसूरत दुनिया का धीरे-धीरे नाश हो रहा है। अब इस नाज़ुक हीरे की रक्षा करने का समय आ गया है।
मंगलवार, 7 अक्टूबर 2008
सूझ-बूझ
एक राजा के दो पुत्र थे राजा का छोटा पुत्र ज्यादा समझदार था अतः राजा छोटे पुत्र को राज्य देना चाहता था परन्तु राज्य के नियमानुसार बड़े पुत्र को राज्य मिलना चाहिए था। अतः राजा ने अपने दरबार में दोनों पुत्रों को बुलाया और दोनों को एक एक हजार रूपये देकर कहा कि तुम लोगों को एक एक हजार रूपये दिये जाते है और एक एक कमरा दिया जाता है जो कि बहुत दिनों से बन्द था और कहा कि तुम लोगों को जो एक एक हजार रूपये दिये गये हैं उससे कमरा भरना है। बड़ें पुत्र ने सोचा एक हजार रूपये मं कमरा कैसे भर सकता है सो बहुत सोचकर उसने कीचड़, गोबर से कमरा भर दिया परन्तु कीचड़ गोबर से सारे राजमहल में दुर्गन्ध फैल गई।
इधर छोटे पुत्र ने सोचा इतने कम रूपये में कैसे कमरा भरेगा सो उसने सोंचा खराब चीजों से कमरा भरना उपयुक्त नहीं है उसने मात्र एक दीपक लाकर बीचों बीच कमरे में रख कर जला दिया।
उधर दरबार में दोनों पुत्रों को बुलाया गया बड़े पुत्र का कमरा पहले देखा गया जिससे भयंकर दुर्गन्ध आ रही थी एवं जिसके कारण राजा, दरबारी, मंत्रीगण कपड़ा व नाक में रूमाल रखकर किसी तरह वहां से निकले फिर छोटे पुत्र के कमरे में गये वहां देखा कि कमरा बिल्कुल साफ सुथरा है बीच में मात्र एक दीपक रखा था जिसकी रोषनी से पूरा कमरा भरा हुआ था। सारे राज दरबारी मंत्रीगण खूब खुष हुए और दूसरे दिन छोटे पुत्र को राज्याभिषेक कर दिया गया।
इधर छोटे पुत्र ने सोचा इतने कम रूपये में कैसे कमरा भरेगा सो उसने सोंचा खराब चीजों से कमरा भरना उपयुक्त नहीं है उसने मात्र एक दीपक लाकर बीचों बीच कमरे में रख कर जला दिया।
उधर दरबार में दोनों पुत्रों को बुलाया गया बड़े पुत्र का कमरा पहले देखा गया जिससे भयंकर दुर्गन्ध आ रही थी एवं जिसके कारण राजा, दरबारी, मंत्रीगण कपड़ा व नाक में रूमाल रखकर किसी तरह वहां से निकले फिर छोटे पुत्र के कमरे में गये वहां देखा कि कमरा बिल्कुल साफ सुथरा है बीच में मात्र एक दीपक रखा था जिसकी रोषनी से पूरा कमरा भरा हुआ था। सारे राज दरबारी मंत्रीगण खूब खुष हुए और दूसरे दिन छोटे पुत्र को राज्याभिषेक कर दिया गया।
धर्म
धर्म वो है जो हृदय में ईष्वर के प्रति मोड़ दे आप ईष्वर के बताये मार्ग दर्षक पर चल दें तभी हम सही रूप से धार्मिक होंगे। आज इस कलयुग में अपने चरित्र एवं संस्कारों से दूर हो गये हैं। संस्कार रहित होकर केवल आर्थिक एवं अधार्मिक कार्यों में लिप्त हो गये हैं। अतः ईष्वर से बहुत दूर हो गये हैं। बच्चें कच्चे घड़े के समान हैं जिस प्रकार कुम्हार अपना चाक चलाकर मिट्टी को नाना प्रकार के सांचे में ढाल कर अनेक प्रकार की आकृतियां बनाता है उसी तरह बच्चों को भी अच्छे संस्कार में ढालने के लिये घर का वातावरण शुद्ध बनाना होगा एवं माता-पिता को भी अपने में सभी बुराइयों से दूर रहकर, एवं धार्मिक बनना होगा उनके द्वारा किये गये आचरण पर ही बच्चे का भविष्य निर्भर होगा।
सफल और असफल व्यक्तियों के भेद से साहस व ज्ञान की कमी के कारण एवं संकल्प शक्ति के अभाव ही उन्हें सफलता प्राप्त नहीं होती है। धार्मिक होने के लिये छल-कपट, लोभ, असत्य, चोरी, हिंसा, क्रोध, परिग्रह मायामोह, एवं हिंसा को त्यागना होगा अपने में संस्कार और वातावरण को सही रखना पड़ेगा। अहिंसा धर्म का पालन पूर्णतया करना होगा। अहिंसा धर्म पर चलने की वकालत बहुत से गुरूओं एवं संसार के महापुरूषों ने की है जिसमें भगवान महावीर, भगवान बुद्ध एवं महात्मा गांधी प्रमुख हैं। आज के समय में विस्फोटक सामान निरन्तर बनाये जा रहे हैं ऐसे समय में अहिंसा धर्म का पालन करके संसार को तीसरे महायुद्ध से बचाया जा सकता है।
सफल और असफल व्यक्तियों के भेद से साहस व ज्ञान की कमी के कारण एवं संकल्प शक्ति के अभाव ही उन्हें सफलता प्राप्त नहीं होती है। धार्मिक होने के लिये छल-कपट, लोभ, असत्य, चोरी, हिंसा, क्रोध, परिग्रह मायामोह, एवं हिंसा को त्यागना होगा अपने में संस्कार और वातावरण को सही रखना पड़ेगा। अहिंसा धर्म का पालन पूर्णतया करना होगा। अहिंसा धर्म पर चलने की वकालत बहुत से गुरूओं एवं संसार के महापुरूषों ने की है जिसमें भगवान महावीर, भगवान बुद्ध एवं महात्मा गांधी प्रमुख हैं। आज के समय में विस्फोटक सामान निरन्तर बनाये जा रहे हैं ऐसे समय में अहिंसा धर्म का पालन करके संसार को तीसरे महायुद्ध से बचाया जा सकता है।
शनिवार, 4 अक्टूबर 2008
‘हिमालय’
भारत की उत्तरी दिशा मे स्थित हिमालय पर्वत वर के समान हैं। दुनिया का सबसे ऊँचा पहाड़ ‘माऊँट एवरेस्ट’ इसी पर्वत श्रंखला मे स्थित है। 'हिमालय' संस्कृत का शब्द है; 'हिम' अर्थात बर्फ़ और 'आलय' अर्थात घर। उनकी ऊँचाई के कारण, वे साल भर बर्फ़ से लदे रहते हैं।
हिमालय श्रंखला तीन तर्कों मे बटी हुई हैं; हिमाद्री, हिमाचल और शिवालिक। उनमे स्थित शहर एवं घाटियाँ अति खूबसूरत हैं। शिमला, देहरादून, मसूरी इत्यादि पहाड़ी शहर दुनिया भर मे मशहूर हैं। जगह-जगह से पर्यटक इन शहरों के वातावरण को महसूस करने आते हैं।
सदियों से ये पर्वत भारत के रक्षक रहे हैं। इनके कारण चीन के राजा-महाराजा ने कभी भी भारत पर आक्रमण करने का प्रयत्न नही किया।
हिमालय पर्वत भारत को उत्तरी चीन की ठंडी हवाओं से भी बचाते हैं, जिसके कारण उत्तर प्रदेश, बिहार आदि प्रदेशों मे खेती के लिए उचित तापमान बना रहता है। उनही के कारण, वर्षा ॠतु के समय, बादल भारत की सीमा को पार नही कर पाते, और वे हिमालय पर्वतों से टकराकर भारत के उत्तरी प्रदेशों मे खूब बरसते हैं। इसलिए सारे उपजाऊ खेत भारत के इसी खण्ड मे स्थित हैं।
बहुत सी नदियाँ भी हिमालय की बर्फ़ीली चोटियों मे पेदा होती हैं। इनमे से गंगा, यमुना, सतलुज और ब्रह्मपुत्र सबसे मशहूर नदियाँ हैं।
मेरी राय मे हिमालय पर्वत भारत की पहचान के अहम हिस्से हैं।
हिमालय श्रंखला तीन तर्कों मे बटी हुई हैं; हिमाद्री, हिमाचल और शिवालिक। उनमे स्थित शहर एवं घाटियाँ अति खूबसूरत हैं। शिमला, देहरादून, मसूरी इत्यादि पहाड़ी शहर दुनिया भर मे मशहूर हैं। जगह-जगह से पर्यटक इन शहरों के वातावरण को महसूस करने आते हैं।
सदियों से ये पर्वत भारत के रक्षक रहे हैं। इनके कारण चीन के राजा-महाराजा ने कभी भी भारत पर आक्रमण करने का प्रयत्न नही किया।
हिमालय पर्वत भारत को उत्तरी चीन की ठंडी हवाओं से भी बचाते हैं, जिसके कारण उत्तर प्रदेश, बिहार आदि प्रदेशों मे खेती के लिए उचित तापमान बना रहता है। उनही के कारण, वर्षा ॠतु के समय, बादल भारत की सीमा को पार नही कर पाते, और वे हिमालय पर्वतों से टकराकर भारत के उत्तरी प्रदेशों मे खूब बरसते हैं। इसलिए सारे उपजाऊ खेत भारत के इसी खण्ड मे स्थित हैं।
बहुत सी नदियाँ भी हिमालय की बर्फ़ीली चोटियों मे पेदा होती हैं। इनमे से गंगा, यमुना, सतलुज और ब्रह्मपुत्र सबसे मशहूर नदियाँ हैं।
मेरी राय मे हिमालय पर्वत भारत की पहचान के अहम हिस्से हैं।
अंधेरी रात
बहुत समय की बात है। मै उस समय केवल छः साल का था। घर मे सभी ‘खलनायक’ पिक्चर के प्रिमीयर के लिए सिनेमा जा रहें थे। अगले दिन स्कूल के लिए मुझे जल्दी उठना था, इसलिए मेरी माँ ने मुझे घर पे ही छोड़ना उचित समझा। उस समय मोहन नाम का बावरची हमारे यहाँ काम करता था। माँ ने उसे घर मे ही रहने को कहा, ताकि मुझे अकेले होने का अहसास न हो।
भोजन करने के बाद, मैने मोहन के साथ कुछ समय तक दूरदर्शन पर खबर देखी। आठ बजे के करीब मुझे नींद आने लगी, तो मै सोने के लिए अपने कमरे चला गया। क्योंकि मै काफ़ी कम उम्र का था, मुझे अंधकार मे बहुत डर लगता था। इसलिए मै सारी बत्तियाँ जलाकर, कुर्ता-पयजामा पहनकर, बिस्तर मे घुस गया। मैने बहुत कोशिश करी, परन्तु मै माँ के बिना सो नही पाया। बाहर बारिश हो रही थी, और बादल ज़ोर से गरज रहें थे। फिर अचानक ज़ोर से बिजली गिरी, और कमरे की सारि बत्तियाँ बुझ गयी।
अंधकार के कारण मै बहुत भयभीत हो गया। बाहर जब भी बिजली चमकती, मुझे जगह-जगह लोगों की परछाइयाँ दिखती। कमरे मे भी मुझे अजीब सी आवाज़ें सुनाई देने लगीं। क्या सचमुच कोई और कमरे मे था या क्या मेरी इंद्रियाँ मुझे धोका दे रहीं थी?
मै मोहन को आवाज़ देने वाला था, जब अचानक मैने दरवाज़े को खुलते सुना। मेरा दिल डर के मारे दौड़ने लगा। बड़ी मुश्किल से मैने दरवाज़े की ओर नज़र उठाई। ऐसा लगा कि एक मोमबत्ती हवा मे तैरकर मेरी ओर आ रही थी। मैने चिल्लाने की कोशिश करी, परन्तु आवाज़ गले से निकली ही नही। मैने आँखें बंद कर दीं। फिर मैने मोहन की आवाज़ सुनी। वह मेरा नाम पुकार रहा था। आँखें खोली तो देखा कि वह मोमबत्ती लिए बिस्तरे के पास खड़ा था। लो! मै बिना बात के डर गया था! उस दिन के बाद मेरा साहस थोड़ा सा बढ़ा, और मै अंधेरे मे फिर कभी नही डरा।
भोजन करने के बाद, मैने मोहन के साथ कुछ समय तक दूरदर्शन पर खबर देखी। आठ बजे के करीब मुझे नींद आने लगी, तो मै सोने के लिए अपने कमरे चला गया। क्योंकि मै काफ़ी कम उम्र का था, मुझे अंधकार मे बहुत डर लगता था। इसलिए मै सारी बत्तियाँ जलाकर, कुर्ता-पयजामा पहनकर, बिस्तर मे घुस गया। मैने बहुत कोशिश करी, परन्तु मै माँ के बिना सो नही पाया। बाहर बारिश हो रही थी, और बादल ज़ोर से गरज रहें थे। फिर अचानक ज़ोर से बिजली गिरी, और कमरे की सारि बत्तियाँ बुझ गयी।
अंधकार के कारण मै बहुत भयभीत हो गया। बाहर जब भी बिजली चमकती, मुझे जगह-जगह लोगों की परछाइयाँ दिखती। कमरे मे भी मुझे अजीब सी आवाज़ें सुनाई देने लगीं। क्या सचमुच कोई और कमरे मे था या क्या मेरी इंद्रियाँ मुझे धोका दे रहीं थी?
मै मोहन को आवाज़ देने वाला था, जब अचानक मैने दरवाज़े को खुलते सुना। मेरा दिल डर के मारे दौड़ने लगा। बड़ी मुश्किल से मैने दरवाज़े की ओर नज़र उठाई। ऐसा लगा कि एक मोमबत्ती हवा मे तैरकर मेरी ओर आ रही थी। मैने चिल्लाने की कोशिश करी, परन्तु आवाज़ गले से निकली ही नही। मैने आँखें बंद कर दीं। फिर मैने मोहन की आवाज़ सुनी। वह मेरा नाम पुकार रहा था। आँखें खोली तो देखा कि वह मोमबत्ती लिए बिस्तरे के पास खड़ा था। लो! मै बिना बात के डर गया था! उस दिन के बाद मेरा साहस थोड़ा सा बढ़ा, और मै अंधेरे मे फिर कभी नही डरा।
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