मंगलवार, 20 जनवरी 2009

प्रकृति से शिक्षा

प्रकृति हमें बहुत कुछ सिखाती है | अगर हम अपनी आँखें खोलकर अपने चारों ओर देखेंगे तो हमें पता चल जाएगा की प्रकृति हर रूप में हमारी शिक्षिका है एवं ज़िन्दगी के कई ज़रूरी बातें हमें प्रकृति ही सिखाती है | किसी कवि ने ठीक ही कहा है --

फूलों से नित हसना सीखो, भौंरों से नित गाना,
तरु की झुकी डालियों से सिखों शीश झुकाना |

कवि अपने पाठको से यही कहना चाहते हैं की जिस प्रकार फूल हमेशा मुस्कराते रहेत हैं एवं खिले हुए नज़र आते हैं, हमें भी उनसे यही प्रेरणा लेनी चाहिए एवं ज़िन्दगी में हमेशा हँसते-मुस्कराते रहना चाहिए | जिस प्रकार भवरे हर घड़ी गाते हुए नज़र आते हैं, उसी प्रकार हमें भी हमेशा हँसते गाते रहना चाहिए | अरथार्ट हमें ज़िन्दगी के हर पल को पूर्ण रूप से जीना चाहिए | कहने का भावः यही है की हमारे जीवन रुपी मार्ग में कई बाधाये आएँगी, परन्तु हमें उन्हें पार कर आगे बढ़ते रहना चाहिए एवं हमेशा खुश रहना चाहिए | कवि यह भी कहते हैं की जिस प्रकार वृक्ष अपनी डालियों को नीचे झुकाता है, उसी प्रकार हमें भी अपना सर नीचे झुकने से शर्माना नहीं चाहिए | कवि के कहने का भावः यह है कि अपना भूल स्वीकार करने में कोई बुराई नहीं है | हम अपनी भूल स्वीकार कर बड़प्पन दिखाते हैं | इस प्रकार अगर हम प्रकृति के सिखाये हुए सिद्धान्तों को अपने ज़िन्दगी का अंग बना लेते हैं तो हम सफलता की राह पर चलेंगे |

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