रविवार, 21 सितंबर 2008

सन दो हज़ार पाँच की बात है। गणित की बोर्ड परीक्षा का दिन था। खबर मिली थी कि कुछ छात्रों ने छ्ल से परीक्षा के प्रश्न हासिल कर लिए थे। अखबारों के अनुसार, परीक्षा को टालने की काफी संभावना थी। सच कहूँ तो यह जानकर मुझे थोड़ी सी प्रसन्नता हुई, क्योंकि अब मुझे पढ़ने के लिए ज़्यादा समय मिलने वाला था। परन्तु, कुछ ही समय बाद हमारे विद्यालय के प्रधानाचार्य ने टेलीफोन करके बताया कि परीक्षा उसी दिन होने वाली थी।
मै घर से निकलने ही वाला था जब डाकिया आया और मेरे हाथ मे चिट्ठी दे गया। चिट्ठी मिशिगन विश्वविद्यालय से थी। मुझे उत्तेजना से पेट मे गुदगुदी होने लगी। गाड़ी मे बैठते ही मैने चिट्ठी खोली। जैसे ही मैने पढ़ा कि मुझे मिशिगन विश्वविद्यालय मे दखिला मिल गया है, मै फूला न समाया। मैने तुरंत अपनी माँ और भाई-बहन को टेलीफ़ोन करके खुशख़बरी सुनाई।
उस दिन के पाँच महीने बाद मै दिल्ली छोड़कर मिशिगन आया। यहाँ तीन साल कब और कहाँ बीते, मुझे पता ही नही चला। आज मै ज़िंदगी के अगले मुकाम पर खड़ा हूँ। इस बार मै आमदनी प्राप्त करने के लिए नौकरी ढूंढ रहा हूँ। परन्तु अर्थव्यवस्था की दशा के कारण, इस मुकाम को पार करना असंभव लग रहा है।

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