बहुत समय की बात है। मै उस समय केवल छः साल का था। घर मे सभी ‘खलनायक’ पिक्चर के प्रिमीयर के लिए सिनेमा जा रहें थे। अगले दिन स्कूल के लिए मुझे जल्दी उठना था, इसलिए मेरी माँ ने मुझे घर पे ही छोड़ना उचित समझा। उस समय मोहन नाम का बावरची हमारे यहाँ काम करता था। माँ ने उसे घर मे ही रहने को कहा, ताकि मुझे अकेले होने का अहसास न हो।
भोजन करने के बाद, मैने मोहन के साथ कुछ समय तक दूरदर्शन पर खबर देखी। आठ बजे के करीब मुझे नींद आने लगी, तो मै सोने के लिए अपने कमरे चला गया। क्योंकि मै काफ़ी कम उम्र का था, मुझे अंधकार मे बहुत डर लगता था। इसलिए मै सारी बत्तियाँ जलाकर, कुर्ता-पयजामा पहनकर, बिस्तर मे घुस गया। मैने बहुत कोशिश करी, परन्तु मै माँ के बिना सो नही पाया। बाहर बारिश हो रही थी, और बादल ज़ोर से गरज रहें थे। फिर अचानक ज़ोर से बिजली गिरी, और कमरे की सारि बत्तियाँ बुझ गयी।
अंधकार के कारण मै बहुत भयभीत हो गया। बाहर जब भी बिजली चमकती, मुझे जगह-जगह लोगों की परछाइयाँ दिखती। कमरे मे भी मुझे अजीब सी आवाज़ें सुनाई देने लगीं। क्या सचमुच कोई और कमरे मे था या क्या मेरी इंद्रियाँ मुझे धोका दे रहीं थी?
मै मोहन को आवाज़ देने वाला था, जब अचानक मैने दरवाज़े को खुलते सुना। मेरा दिल डर के मारे दौड़ने लगा। बड़ी मुश्किल से मैने दरवाज़े की ओर नज़र उठाई। ऐसा लगा कि एक मोमबत्ती हवा मे तैरकर मेरी ओर आ रही थी। मैने चिल्लाने की कोशिश करी, परन्तु आवाज़ गले से निकली ही नही। मैने आँखें बंद कर दीं। फिर मैने मोहन की आवाज़ सुनी। वह मेरा नाम पुकार रहा था। आँखें खोली तो देखा कि वह मोमबत्ती लिए बिस्तरे के पास खड़ा था। लो! मै बिना बात के डर गया था! उस दिन के बाद मेरा साहस थोड़ा सा बढ़ा, और मै अंधेरे मे फिर कभी नही डरा।
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