भारत के पहले प्रधानमन्त्री, जवाहरलाल नेहरु की राय मे अंतरिक्ष तक पहुँचने का ज्ञान हमारे देश की प्रगति के लिए ज़रूरी था। उन्होने डाँ. विकरम साराभाई को भारत की अंतरिक्ष संस्था को स्थापित करने का उद्देश दिया।
डाँ. विकरम साराभाई ने भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्थापना करी। उनके नेतृत्व के समय भारत ने राकेटों को अंतरिक्ष मे भेजने की कला विज्ञान हासिल करी। 1979 मे, रूसी राकेट द्वारा, भारत की पहली सेटेलाईट ’आर्यभट’ अंतरिकक्ष तक पहुँची। 1980 मे, ‘सेटेलाईट लाँच वेहिकल’ नामित देशी राकेट पर ‘रोहिनी’ नाम की सेटेलाईट अंतरिक्ष तक पहुँची। इस घटना के कारण, भारत का नाम वैज्ञानिको की बिरादरी मे प्रसिद्ध हुआ।
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन ने 1980-2008 के बीच बहुत प्रगति की है। पिछले दशक मे इसी संगठन ने इसराइल और इटेली की सेटलाईटों को ‘पी.एस.एल.वी’ और ‘जी.एस.एल.वी’ राकेट द्वारा अंतरिक्ष मे भेजा। भारत के ‘पी.एस.एल.वी’ और ‘जी.एस.एल.वी’ राकेट दुनियाँ के सबसे कामियाब राकेटों की सूची मे शामिल हैं।
22 अक्तूबर 2008 को भारत ‘जी.एस.एल.वी’ राकेट द्वारा एक सेटलाइट चंद्रमा की ओर भेजने वाला है। यदि यह मिशन कामियाब हो, तो भारत उन उच्च वर्ग देशों की सूची मे शामिल होगा, जिनके पास चाँद तक पहुँचने का ज्ञान है।
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