मंगलवार, 14 अक्तूबर 2008

"दादा"

कुछ लोग मानते थे कि उसकी एक सबसे बड़ी कमी थी की वह उठती हुई गेंद को खेल नहीं सकता था और कुछ मानते थे कि "आफ साइड" पर वह भगवान के सामान था अगर आप जानते हो कि मैं किसके बारे में बात कर रहा हूँ तो अच्छी बात है लेकिन अगर आप अपने बाल खरोचकर उत्तर का इंतज़ार कर रहे हैं तो सुन लो यह महान चरित्र जिसके बारे में मैं बात कर रहा हूँ उसका नाम है -सौरव चंडीदास गांगुली आज भारत में इनको प्यार सा 'दादा' कहके पुकारा जता है
सन दो हज़ार में "मैच फिक्सिंग" की समस्या के बाद सौरव भारत क्रिकेट टीम के कपतान बने और अगले ४ साल में जो इन्होंने भारतीय क्रिकेट के लिए किया , शायद किसी भी कपतान ने नही किया होगा कपिल देव ने इंडिया को १९८३ मैं विश्व कप जिताया होगा और भारत का नाम रोशन किया होगा लेकिन जितनी उन्नति भारतीय टीम ने २००० से लेकर २००५ के बीच की , शायद बहुत साल के लिए फिर से नहीं देखि जायेगी आप पूछेंगे फिर- इनमे क्या खासियत थी की सिर्फ़ अपने पहले मैच के चार साल बाद वे कपतान बने? सौरव दादा की सबसे ख़ास बात यह थी कि उन्होंने अपनी टीम में एक नया एहसास दिलाया उनका अपने ही खिलाड़ियों में विशवास ने सबको दिखा दिया कि शायद भारत कि टीम अभी क्रिकेट की दुनिया में अपना नाम रोशन कर सकती है इसी विशवास को लेकर, सौरव भारत को २००३ में विश्व कप की आखरी स्थर तक लेकर गए इसके इलावा, उन्होने पाकिस्तान को दोनों भारत और पाकिस्तान में पूर्ण ढंग से हराया

आज अफ़सोस की बात यह है कि दादा अभी ३६ साल के हो गए हैं और पिछले डेढ़ सालों में वे टीम के भीतर-बाहर रहे हैं उन्होने २ हफ्ते पहले कह दिया कि अभी चलती टेस्ट सीरीज़ के बाद वे क्रिकेट से पीछे हट रहे हैं असल में यह एक उदास दिन होगा क्योंकि मेरी राय में वे क्रिकेट के सभी खिलाडयों, भूतकाल या वर्तमान काल में, में से एक सबसे सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी थे

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