बचपन से ही मुझे विज्ञान मे बहुत रूची थी। मै घर मे रखी बिजली से चलने वाली मशीनों को पेंचकस से खोलकर उनके अंदरूनी हिस्से को समझने की कोशिश करता था। अक्सर, मै खराब मशीनों को भी ठीक कर देता।
हमारे पाठशाला मे प्रतिवर्ष ‘साइंस डे’ मनाया गया। ‘साइंस डे’ 28 फरवरी को मनाया जाता है। 1928 मे इस दिन पर सी. वी. रमन नाम के वैज्ञानिक ने दुनिया को अपनी एक महत्त्वपूर्ण खोज के बारे मे बताया। इसी खोज के लिए उन्हें 1930 मे नोबेल पुरस्कार मिला।
‘साइंस डे’ पर हमारे पाठशाला के सभी विद्यार्थी अपने-अपने अविष्कारों का प्रदर्शन करते थे। मैने छ्ट्टी कक्षा मे अंधे लोगों के लिए कलम बनाई। वह कलम स्याही के बजाय ऊन पे चलती थी। कागज़ के बजाए ‘वेलक्रो’ पर लिखना पड़ता था ताकि ऊन वेलक्रो पर चिपक सके। नेत्रहीन लोग चिपके हुए ऊन को महसूस करके शब्दों का आकार जान सकते थे।
इसी आविष्कार के लिए मुझे उस वर्ष प्रथम पुरस्कार मिला। मैने वह कलम दिल्ली के ‘ब्लाईन्ड स्कूल’ को दान कर दिया। इस आविष्कार के साथ मैने इंजीनियरिंग की दुनिया मे अपनी यात्रा शुरू करी।
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