दूरदर्शन समाज को बहुत प्रभावित करता है। भारत के इतिहास मे यह साफ़ दिखता है। 1987 मे जब रामानंद सागर की रामायण दूरदर्शन पर दिखाई जाती थी, तो दस करोड़ लोग अपना सारा काम काज छोड़कर उसे देखते थे।
1990 के बाद केबल टी वी द्वारा पश्चिमी चैनल दूरदर्शन पर दिखने लगे। इस समय बच्चों पर पश्चिमी प्रभाव बढ़ने लगा। वे पश्चिमी संस्कृति को अपनाने लगे। दुख की बात यह है कि पश्चिमी सभ्यता के गुणों को अपनाने के बजाए, भारतीय शहरों मे रहने वाले बच्चों ने उनकी बहुत सी बुरी आदतें भी अपनाई हैं।
1995 के बाद एकता कपूर के बहुत से कार्यक्रम दूरदर्शन पर दिखाई देने लगें, जो ज़्यादातर साँस-बहू के बुरे रिश्तों के विषय पर बनाएँ जाते हैं। मेरी राय मे ये कार्यक्रम समाज मे बुरे खयालात फैलाते हैं।
आज कल भारत मे समाचार चैनलों की गुणता बहुत गिर गई है। असली खबर पर कम और फ़िल्म कलाकारों की ज़िंदगी पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाता है। अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान के हर कदम के बारे मे सब को खबर रहती है, परन्तु दुनिया की आर्थिक स्थिती के बारे मे केवल गिने चुने लोग जानते हैं। मेरी राय मे भारतीय मीडिया को अपनी ताकत पहचाननी चाहिए और उस ताकत को समाज के भले के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।
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