प्रारम्भ से ही हमारा जीवन यदि अनुशासित होगा तो हम तमाम समस्याआंे का समाधान एक स्वस्थ्य एवं निरपेक्ष्य तथ्यांे पर भविष्य मंे कर सकते हैं। अन्यथा समस्याएँ ज्यों की त्यांे बनी रहेगी। चाहंे कितनी सरकारंे क्यांे न बदल दी जाये, चाहंे कितनी पीढ़ियाँ क्यांे न गुजर जाये। यदि देश की विभिन्न समस्याआंे की गहराई में जाकर देेखें तो उसमंे से कुछ बातंे ऐसी मिलती हैं, जो देश की विभिन्न समस्याआंे को जन्म देती हैं। जिनमंे आर्थिक एवं राजनैतिक महत्व के साथ देश की राष्ट्रभाषा, धर्म, संस्कृति और खान-पान के आधार पर ही लोगांे मंे अनुशासन तोड़नें मंे अथवा समस्याएँ खड़ी करने के लिए प्रेरित होने के प्रसंग मिलते हैं। देश में व्याप्त इन समस्याआंे के निराकरण के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को अनुशासनप्रिय होना चाहिए। अनुशासनप्रिय होने के लिए हमंे स्वप्रेरणा के आधार पर कार्य करना होगा। वैलंेटाइन के अनुसार-अनुशासन बालक की चेतना का परिष्करण है। बालक की उत्तम प्रवृत्तियांे और इच्छाआंे को सुसंस्कृत करके हम अनुशासन के उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं।
अनुशासन से अभिप्राय नियम, सिद्धान्त तथा आदेशांे का पालन करना है। जीवन को आदर्श तरीके से जीने के लिए अनुशासन मंेे रहना आवश्यक है। अनुशासन का अर्थ है, खुद को वश में रखना। अनुशासन के बिना व्यक्ति पशु के समान है। विद्यार्थी का जीवन अनुशासित व्यक्ति का जीवन कहलाता है। इसे विद्यालय के नियमों पर चलना होता है। शिक्षक का आदेश मानना पड़ता है। ऐसा करने पर वह बाद मंे योग्य, चरित्रवान व आदर्श नागरिक कहलाता है। विद्यार्थी जीवन मंे ही बच्चे मंे शारीरिक एवं मानसिक गुणांे का विकास होता है जिसे उसका भविष्य सुखमय बनाने के लिए अनुशासन मंे रहना जरूरी है। किसी काम को व्यवस्था के साथ-साथ अनुशासित होकर करते हैं तो उस कार्य को करने मंे कोई परेशानी नहीं होती। इसके अलावा कार्य करते समय भय, शंका एवं गलती होने का डर नहीं होता है। इसलिए सफलता प्राप्त करने के लिए अनुशासन मंे रहना जरूरी है। यदि हम अपने वातावरण को देखंे तो पता चलता है कि प्रकृति एवं प्राकृतिक वस्तुएँ भी अनुशासन मंे हैं।
शनिवार, 8 नवंबर 2008
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