मुझे बचपन से ही भारतीय शास्त्रीय संगीत मे बहुत रुचि रही है। बहुत से प्रसिद्ध संगीतज्ञ, जैसे उसताद अमजद अली खान और पण्डित शिव कुमार शर्मा ने हमारे विद्यालय मे संपादन किया। उनको देखकर मै भी भारतीय संगीत सीखने को प्रभावित हुआ।
जब मेरे सारे मित्र पश्चिमी संगीत सीख रहें थे, मै तबला और हिन्दुस्तानी चिकारा सीख रहा था। पश्चिमी संगीत के विभाग मे सौ से अधिक छात्र थे, परन्तु हिन्दुस्तानी संगीत के विभाग मे केवल नौ या दस छात्र थे।
तबला मे मेरी बहुत रुची थी। मैने छः सालों के लिए तबला सीखा। तबला बजाने से जो लय और गत का अंदाज़ा मिलता है, वो किसी और संगीत वाद्य से नही मिलता। अपने अध्यापक के साथ तबले पर जुगलबंदी रचाते समय बहुत आनंद मिलता था।
मैने हिन्दुस्तानी चिकारा भी बजाना सीखा। चिकारे को सही तकनीक से बजाने के लिए बहुत रियाज़ और अनुशासन की ज़रुरह होती है, परन्तु जब ये वाद्य सुर मे बजता है, तो अधिक आनंद मिलता है।
आज भारतीय शास्त्रीय संगीत धीरे धीरे गायब हो रहा है। मै अपने जीवन मे इसे जीवित रखने का पूरा प्रयत्न करूँगा।
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