शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

नाना-नानी से लगाव

मै हमेशा अपने नाना और नानी के बहुत करीब रहा हूँ। जब मै 7 साल का था, मेरी माँ को दो महीनों तक काम के लिए अमरीका जाना पड़ा। मै उन दो महीनों के लिए अपने नाना-नानी के साथ रहा।
हर सुबह छः बजे मेरे नाना सैर करने जाते थे। मै उनके साथ-साथ साइकिल पर जाता था। हम ‘डीयर पार्क’ मे एक घंटे तक सैर करते थे। सैर के बाद हम घर आकर नानी के साथ स्वादिष्ट परांठे या चीले खाते थे। नाश्ते के बाद मेरे नाना हमेशा किसी काम मे लगे रहते थे और मै उनकी मदद करता था। उनही के साथ मैने आरी चलानी सीखी और गाड़ी की मरम्मत करनी भी सीखी। कभी कभी हम सब क्लब के पुस्तकालय मे भी जाते थे।
मेरे नाना भारतीय नौसेना के ‘वाईस एडमिरल’ थे। वे 1971 की जंग मे लड़े थे और उनके उत्तम नेतृत्व के लिए उन्हें महा वीर चक्र मिला। उनके घर मे जगह जगह पुरस्कारों को देखकर मै बहुत खुश हो जाता था।
दोपहर को जब मेरे नाना और नानी सोते थे, मै दूरदर्शन देखता था। हमारे घर मे मेरी माँ ने केबल नही लगाया था, और नाना-नानी के यहाँ केबल देखने मे मुझे बहुत मज़ा आता था।
मै अपने नाना को पिता के समान मानता था। माँ के लौटने के बाद भी मै हर हफते एक रात अपने नाना-नानी के घर मे बिताता था। वे दोनो बहुत ही अनुशासित तरीके से रहते थे। मै अपने जीवन मे उनका अनुशासन शामिल करने का बहुत प्रयत्न करता हूँ।

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