गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

संगीत

जब मैं पॉँच साल का था, मेरे माता पिता ने मुझे कार्नाटिक संगीत की कक्षा शुरू करने का आदेश दिया. मैं सिर्फ़ पाँच साल का था और घर छोड़कर किसी अनजान के घर जाकर गाना नहीं चाहता था. परन्तु उनकी विवशता पर मेरा और कोई राह नहीं था. पहले दिन जाने पर मैंने देखा की मेरी उम्र के लड़के और लड़कियां थी.

मेरे अध्यापिका का नाम इंद्रा कृष्णन था. थोड़े हफ्तों के बाद में ही मुझे संगीत पसंद आने लगा और गाने की इच्छा बड़ने लगी. मुझे पता चला की हिन्दुस्तानी और कार्नाटिक संगीत सीखने पर गाने की नींव बढ़ जाती है और गाते गाते मैं उन्नति करने लगा.

आज पन्द्रह साल के बाद, मैं अपने विश्वविद्यालय में भी गाता हूँ. हमारा एक संगीत का झुंड है जिसको हम मेज मिर्ची बुलाते हैं. दो साल पहले अप्रैल में हम गाने लगे और शीग्र ही लोग हमारे बारे में सुनने लगे. हम हिन्दुस्तानी गाने गाते हैं और अमरीकी गाने भी. कर्नाटिक संगीत सीखने से गाना आसानी से आती है और में खुश हूँ की मैंने अपने माता पिता की बात सुनली, और पन्द्रह साल पहले श्रीमती इंद्रा जी से गाना सीख ली.

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