सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

स्कूल के दिन

मुझे आज भी वह दिन याद है जब मैं स्कूल में थी और मेरे सेनियेर्स का स्कूल में आखरी दिन था | हमने उनके लिए एक बहुत बढ़िया कार्यक्रम तैयार किया था और भोजन का भी प्रबंध किया था | सब लड़कियां सरियों में बहुत सुंदर लग रही थी | कार्यक्रम के शुरुवात में सब हँसती हुई नज़र आ रही थी लेकिन जैसे जसे हम अंत की ओर बढ़े सबकी आँखें भर आने लगी | कोई भी अपनी जीवन मार्ग पर स्कूल छोड़कर आगे नहीं बढ़ना चाहती थी | तब मुझे यह बहुत अजीब लगा और मन ही मन मैंने सोचा की जब मेरा स्कूल का आखरी दिन होगा तो में तो बल्कि बहुत खुश होंगी क्यूंकि आखिरकार तेरह साल बाद मैंने अपना स्कूल ख़त्म कर लिया था | परन्तु मुझे तब क्या पता था की स्कूल छोडके आगे बढ़ना कितना मुश्किल होता है | जिन दोस्तों के साथ मैं ने अपने ज़िन्दगी के तेरह साल काटे थे अब में उनको रोज़ देख भी न पाऊंगी | स्कूल का मेरे जीवन में कितना महत्वपूर्ण स्थान है यह तो मैं शायद अपने स्कूल के आखरी दिन पर भी न समझ पाई, लेकिन जैसे जैसे हम सब अपनी अपनी जीवन राह पर आगे बढ़े, कॉलेज में दाखिल हुए और धीरे धीरे सब बदलने लगा, तब मुझे एहसास हुआ की स्कूल एक ऐसी जगह थी जहाँ हम असली दुनिया से दूर थे | मैं अपनी दोस्तों से बहुत दोर्र हूँ परन्तु फिर भी हम दो दिन में एक बार बात तो कर ही लेतें हैं | स्कूल के दोस्त ऐसे होते हैं की अगर हम एक साल के बाद भी मिले तो भी सब कुछ वैसे ही रहता है जैसा हम उसे छोड़कर गए थे | विचित्र तरह की दोस्ती है यह | और क्या है, जब हम सब फिर मिलते हैं तो स्कूल के बातें जैसे ख़त्म ही नहीं होती | कभी कभी तो ऐसा लगता है के अगर मुझे मौका मिलता तो में फिर से स्कूल के दिनों में वापस चली जाती |

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