मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

अनात्मा

बौद्ध धर्म में अनात्मा का सिद्धांत होता है। इस मत को स्थापित करने के लिये बौद्ध शास्त्र में बहुत न्याय इस्तेमाल किया जाता है। इसके सिवाय शास्त्र लोगों के अनु्भव भी परीक्षा करते है। परम द्र्ष्टि से आदमी का सार या तत्व मन से चला जाता है। इस मत को सिखाने के लिये बौद्ध शास्त्र हमें एक प्रसिद्ध द्रिष्टांत दिखाते है। एक बार नागसेन ने राजा मिलिन्द को बौद्ध धर्म के तरफ मोड लिया। इस शुभ फल को नागसेन ने कैसे प्राप्त किया? द्र्ष्टांत के द्वारा उसने अनात्मा मत को सिखाया। नागसेन ने राजा को उसके वाहन के बारे पुछा। प्रश्न था - "राजा, आप यहाँ कैसे आएँ? राजा ने जवाब दिया कि "मैं राजा हूँ और मैं पैदल से हर किस नहीं आया लेकिन रथ से।" नागसेन ने उसको पुछा कि "रथ क्या है-- धुरा, चक्र, रथ का मध्य अंश, या ध्वज?" "नहिं" राजा ने उत्तर दिया। अंत में नागसेन ने कहा कि "भाषा में और व्यवहार द्रिष्ट से रथ का सत्ता मान लीया जाता है। लेकिन जब निकट से विचार करते है, हम रथ या आत्मा को भी नहीं देख सखतें। फिर राजा मिलिन्द ने बौद्ध धर्म को अपनाया।

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