सन् 2005 में अपने-अपने माता-पिता एवं बहन तथा कुछ परिवारिक सदस्यों के साथ दार्जलिंग के लिए सिलीगुड़ी से रवाना हुआ। रास्ते में हरी-हरी वादियां खेत धरती पर स्वर्ग जैसा महसूस हो रहा था रास्ते में छोटी ट्रेन मिली जोकि हम लोगों के साथ-साथ चल रही थी बहुत ही मनमोहक दृश्य लग रहा था। हम लोग दार्जलिंग में होटल मं ठहरे वहां से माल रोड़ का नजारा दिखाई दे रहा था हम लोग रवाना खाकर रात में माल रोड घूमने गये दूसरे दिन बाजार घूमते रहे। हम लोग तीसरे दिन फाॅल देखने गये जोकि दर्जलिंग से करीब 3000 फिट नीचे था इस दृश्य का बयान करना एक पेज में असम्भव सा है बहुत खुबसूरत नजारा लग रहा था यहां पर दो तीन घंटे बिताने के बाद चूंकि हम लोगों को सिक्किम भी जाना था। सिक्किम के लिए रवाना हो गये रास्ते में छोटे-छोटे झरने, हरी-हरी वादियां, घुमावदार सड़के तथा रास्ते में एक इंजीनियरिंग कालेज बहुत ही खूबसूरत लग रहा था।
सिक्किम में तीन दिन रहे दूसरे दिन हम लोग चाइना बार्डर, एक सेनानी का मन्दिर जोकि देखने लायक था कहा जाता है कि यह सैनिक अपनी हर माह तन्खवाह लेने आता है जबकि उसे मरे हुए कई साल बीत चुके है उसके कपड़े जूते सभी कमरे में लगे हुए थे जो कि फ्रेश लग रहे थे यह सब देखने के बाद हम लोग वापस गैंगटोक के लिये रवाना हो गयेे रास्ते में एक जगह सड़क धस गयी थी जिसमें हम लोग एवं अन्य लोगों ने भी पत्थर उठा-उठाकर सड़क बनाने की कोशिश की इतने में सरकारी गाड़ी सड़क बनाने के लिये पहुंच गयी और हम लोग बहुत किनारे-किनारे से गाड़ी को निकालते हुये गैगटोक पहुंच गये दूसरे दिन गैगटोक घूमे और बाद में सिलीगुड़ी के लिये वापस रवाना हो गये।
सोमवार, 8 दिसंबर 2008
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1 टिप्पणी:
Apne jo jankari di hai uskel liya thanks.
SaurabhTripathi
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