एक राजभवन में एक जवान और ख़ूबसूरत इक्कीस उमर की राजकुमारी रहती है. हर रात राजकुमारी का पलंग में दोनों बाजू एक प्राणी और एक चीज थे। किंतु कौन और क्या थे वे? देखीये तो, आपका मन में यह चित्र बनाइए - पलंग के मध्य में राजकुमारी। उसका नाम है कैंडी जिसका अर्थ है औरत जिसका शौक है कैंडी खाना। जब वह दो साल की उमर थी, उसके पिताजी ने उसका नाम बदल दिया और वजह यह है कि चोटी राजकुमारी ने कैंडी खाने का आदत शुरू किया। और सुनो - आज तक इस आदत चल रहा है। जन्म का वक्त, गुरूजी ने कहा कि अगर शिशु का नाम 'कई' ध्वनी से शुरू होगी तो हर रात वह एकाएक उठेंगी और इसकी एक चीज की जरुरत पड़ेंगी. कैंडी के पिताजी ने गुरूजी को पागल समझकर उसकी प्यारी बेटी का नाम कैंडी ही रखा - मगर दो साल के बाद। गुरूजी ने कुच्छ और भी कहा। कैंडियाँ ऐन मौके पर उसको खिलाना पडेगा.
जब वह दस साल की उमर पाहुची, राजा ने उसको एक बड़ा उपहार दिया - चार पैर का ऊंच्चा डिब्बा और क्या थे डिब्बे में? कैंदियाँ! कैंडी ने उपहार खोला और संतोष से वह बेहोश हो गयी. मैं कैंडी की सबसे अच्छी दासी
हूँ और उस आपातकाल में, फट से सवाल सोचकर, मैं नाहर से ठंडी पानी ले आयी। उसके बाद मैंने राजकुमारी की चहरे की तरफ पानी फेंका. जो कुच्छ मैंने किया इस राजभवन में, मैं कैंडी की बला से करती थी ओर आज भी. कैंडी अपनी जिम्मेदारी समझकर, मैंने विधाता के हथों में कैंडी की देखबाल छोडी।
राजा को शांत करने के बाद, कुच्छ और बखेडा हुआ। मैनें राजकुमारी की तरफ देखी और डर गयी। रह-रहकर वह पेटूमल बंगयी। उसका पेट कितना बड़ा होगया जैसे किसी ने उसका पेट पर लात मारा और नही उसके पास पेट भरने का समान। उस पल में, वह गरीब और भूकी बच्ची जैसी लगती थी। राजा का चेहरा उतर गया और उन्होंने उसकी बेटी कि परवाह किया। परन्तु राजा और मैं भी बेवकूफ बन गए.... सुनो कैसे।
थोड़े वक्त के बाद, मंजील पर मैनें कैंडी का उपहार देखा, खोला और कैंडी को दो-तीन कैंडीयाँ खिलाया। वह बेहोशी से लौटी और रात में उसकी पेट भी कम होगायी। लेकिन आज तक हर रत, जैसे गुरुजी ने कहा कैंडी की जन्म पत्री देखकर, कैंडी सहसा उठ जाती है बड़ा पेट के कारण। वैसे मैं उसकी दासी हुँ इसलिए मुझे उसके कमरे में सोने पड़ती हुँ उसको कैंडी खिलाने के लिए।
तो फिर अंत में, राजकुमारी पलंगे के मध्य, मैं बाये बाजू, और कैंदीयाँ दायें बाजू। कल रात राजकुमारी का पेट फट गया जैसे बलून फट जाते है। ओहो मैंने कहा। पेट की बिमारी की आड़ में कैंडी हर रात को कैंडी खाती है। उसने अपना उल्लू सीधा किया और मैं शर्म से गड़ गयी। आज राजा ने दूसरा बार राजकुमारी का नाम बदल दिया - पेटुमल राजकुमारी!
जब वह दस साल की उमर पाहुची, राजा ने उसको एक बड़ा उपहार दिया - चार पैर का ऊंच्चा डिब्बा और क्या थे डिब्बे में? कैंदियाँ! कैंडी ने उपहार खोला और संतोष से वह बेहोश हो गयी. मैं कैंडी की सबसे अच्छी दासी
हूँ और उस आपातकाल में, फट से सवाल सोचकर, मैं नाहर से ठंडी पानी ले आयी। उसके बाद मैंने राजकुमारी की चहरे की तरफ पानी फेंका. जो कुच्छ मैंने किया इस राजभवन में, मैं कैंडी की बला से करती थी ओर आज भी. कैंडी अपनी जिम्मेदारी समझकर, मैंने विधाता के हथों में कैंडी की देखबाल छोडी।
राजा को शांत करने के बाद, कुच्छ और बखेडा हुआ। मैनें राजकुमारी की तरफ देखी और डर गयी। रह-रहकर वह पेटूमल बंगयी। उसका पेट कितना बड़ा होगया जैसे किसी ने उसका पेट पर लात मारा और नही उसके पास पेट भरने का समान। उस पल में, वह गरीब और भूकी बच्ची जैसी लगती थी। राजा का चेहरा उतर गया और उन्होंने उसकी बेटी कि परवाह किया। परन्तु राजा और मैं भी बेवकूफ बन गए.... सुनो कैसे।
थोड़े वक्त के बाद, मंजील पर मैनें कैंडी का उपहार देखा, खोला और कैंडी को दो-तीन कैंडीयाँ खिलाया। वह बेहोशी से लौटी और रात में उसकी पेट भी कम होगायी। लेकिन आज तक हर रत, जैसे गुरुजी ने कहा कैंडी की जन्म पत्री देखकर, कैंडी सहसा उठ जाती है बड़ा पेट के कारण। वैसे मैं उसकी दासी हुँ इसलिए मुझे उसके कमरे में सोने पड़ती हुँ उसको कैंडी खिलाने के लिए।
तो फिर अंत में, राजकुमारी पलंगे के मध्य, मैं बाये बाजू, और कैंदीयाँ दायें बाजू। कल रात राजकुमारी का पेट फट गया जैसे बलून फट जाते है। ओहो मैंने कहा। पेट की बिमारी की आड़ में कैंडी हर रात को कैंडी खाती है। उसने अपना उल्लू सीधा किया और मैं शर्म से गड़ गयी। आज राजा ने दूसरा बार राजकुमारी का नाम बदल दिया - पेटुमल राजकुमारी!
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