मंगलवार, 27 जनवरी 2009

"बारिश में टेहेलना"

मुझे अकेले टेहेलने का बहुत शौक है | टेहेलते वक्त मुझे कुछ अलग और अच्छा महसूस होता है | ऐसा लगता ही जैसे कितने दिनों बाद खुल के साँस लेने का मौका मिला हो | मुझे सबसे ज्यादा मज़ा बारिश में टेहेलने से आता है | बारिश की बात ही अलग है | जब भी मैं तेज़ बारिश में ( छाते के साथ हाँ !) चलती हूँ , मुझे एक तरफ़ सृष्टि के इस ऐश्वर्य का तेज दिखाई देता है और दूसरी तरफ़ इस जगत की शक्ति के सामने अपना छोटापन | बारिश में जाने ऐसा क्या है जिससे वह सब कुछ निर्मल कर देती है , चारों और शीतलता ले आती है , हवा में एक तरह का हल्कापन महसूस होने लगता है | वैसे देखा जाए तो बारिश दो तरह के होते हैं - एक जो चारो ओर तबाही मचाता है ओर दूसरा जो मन को खुश ओर आत्मा को हल्का कर देता है | मैं उस दूसरे तरह के बारिश की बात कर रही हूँ जिसमे चलते वक्त चाल में स्फूर्ति आ जाती है , चारो ओर हवा में महक ओर मिटटी की खुश्बू समां जाती है , ओर जब यह हवा बदन को छूती है तो लगता है प्रकृति ने गले लगा के अपने लपेट में ले लिया हो | ऐसे वक्त में लगता है सारी उलझने दूर हो गई हों, महसूस होता है सारी परेशानिया झेल लेंगे , कल जो भी हों, सामना कर लेंगे | आज बस मौसम के इस ग़ज़ल में डूब जाओ , कल जो भी हों | इस अनुभूति को आप भी ज़रूर महसूस कीजियेगा | ( !! बारिश में भीगना सेहत के लिए हानिकारक है !! )

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