रविवार, 15 फ़रवरी 2009

ट्रेन यात्रा

मैंने अपना बचपन ज़्यादातर भोपाल में गुज़ारा है | वैसे तो मेरे माता पिता जी हैदराबाद के हैं और मेरा बाकी परिवार भी वहीँ पर है , परन्तु पिताजी के काम के कारण हमें भोपाल में बस जाना पड़ा | मुझे इस बात से कोई भी शिकायत नही | इसी बहाने मुझे हर छुट्टियों में हैदराबाद जाते वक्त ट्रेन में सफर करने को मिलता था | ट्रेन या रेलयात्रा बेशक मेरी ज़िन्दगी के सबसे महत्वपूर्ण अनुभवों में से एक रहा है | काफ़ी लोग इसे दुविधापूर्वक मानते हैं , उस बात से पूरी तरह असहमत भी नही हो सकती , लेकिन उस माहौल में ही अपने देश की काफ़ी झलकियाँ दिखती हैं | एक तरफ़ अमीर-गरीब का भेदभाव दिखता है तो दूसरी तरफ़ पुराणी और नई पीड़ी में फरक | जहाँ एक तरफ़ लोगों के चेहरे अपनों से दूर जाते हुए उदास हो जाते हैं तो दूसरी तरफ़ कुछ लोग अपनों से मिलने के इंतज़ार की खुशी में उत्सुक हो जाते हैं | एक तरफ़ खिड़की वाली सीट पर बैठने को लेकर मारपीट और झगडा करते बच्चे तो दूसरी तरफ़ परिवार में होती समस्याओ को लेकर बड़े बूढो में दमदार बहस | एक तरफ़ वे लोग जिन्हें अपनी व्यस्त ज़िन्दगी में आराम का समय भी नही मिलता था और यह रेलयात्रा एक बहाना है चैन से सोने का , दूसरी तरफ़ वे लोग जो इस रेल को अपने खेल और मनोरंजन का अड्डा बनाने की पूरी तय्यारी करके आए हुए हैं | जिस तरह इन्द्रधनुष में साथ साथ सातों रंग दिखाई देते हैं , रेलयात्रा के दौरान उन चंद घंटो में भारतीय रहन सहन की साड़ी झलकियाँ दिख जाती हैं |

2 टिप्‍पणियां:

mukta mandla ने कहा…

क्या कहने साहब
जबाब नहीं निसंदेह
यह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है
धन्यवाद..साधुवाद..साधुवाद
satguru-satykikhoj.blogspot.com

विजय ठाकुर ने कहा…

excellent description and well written.

Vijay Thakur