रामायण हमारे प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में से एक है। पृथ्वी पर जब-जब पाप बढ़ा और धर्म की हानि हुई, तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर मानव रूप में मानव के कल्याण करने के लिए अवतार लिया और लोगों को मर्यादा में रहने तथा धर्म का पालन करने की शिक्षा दी।
रामायण की रचना आदि कवि वालमिकी ने संस्कृत भाषा में की थी। रामायण में श्री राम का चरित्र-चित्रण
किया गया है। श्री राम अयोध्या के महाराज दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे, वे साहसी, वीर, आज्ञाकारी, गुरू, पितृ और मातृ भक्त थे। इसीलिए भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुशोत्तम कहा जाता है।
श्री राम बहुत ही पराक्रमी थे। विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा करते समय उन्होंने एक तीर से अनेक राक्षसों का वध कर दिया था। वह धनुष-बाण चलाने की कला में अद्वितीय थे। इसीलिए आज भी किसी वस्तु की अमोघता बताने के लिए राम-बाण शब्द का प्रयोग कीया जाता है।
श्री राम ने 14 वर्ष का वनवास स्वीकार करके पिता के वचन की रक्षा और माता की आज्ञा का पालन किया। रामायण पढ़ते समय ऐसा कहीं भी दिखाई नहीं देता, जहाँ वे मर्यादा-हीन हुए हों। माता, पिता एवं गुरुजन के प्रति विनम्रता तथा स्त्री जाति के प्रति सम्मान, राम के मर्यादा पालन को प्रदर्शित करता है।
श्री राम ने सूग्रीव और विभीषण के साथ मित्रता बहुत ही सुंदर ढंग से निभायी। भाइयों के प्रति स्नेह किस प्रकार
करना चाहिए, रामायण इसका सुंदर उदाहरण है।
राक्षस-राज रावण के अहंकार को नष्ट करके युद्ध में उसका संहार करके श्री राम ने विभीषण को लंका का राज्य सौंप दिया। राम के चरित्र में कहीं भी कोई दोष देखने को नही मिलता है। वे योग्य पुत्र, स्नेह करने वाले भाई, आदर्श पति ,अद्वितीय धनुर्धर और मर्यादा पालक थे। रामायण में श्री राम के बाल काल से लेकर 14 वर्ष का वनवास, लंका पर विजय तथा अयोध्या आने और राज-काज संभालने तक का विवरण है। उनके शासन काल में प्रजा सुख-शांति से रहती थी, आज भी हम लोग राम राज्य जैसे शासन की कल्पना करते हैं।
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