परोपकार सच्चे मनुष्य की पहचान है। अपने लिए तो सभी जीते हैं, परंतु सही मायने में उसी का जीवन सार्थक
होता है, जो दूसरों के लिए जीता है।
प्रकृति भी हमें परोपकार करना सिखाती है। वृक्ष पथिकों को छाया और फल देते हैं, पृथ्वी सबका बोझ उठाती है, फूल ख़ुशबू देते हैं और हमारे थके, हारे मन को प्रसन्न करते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रकृति भी किसी न किसी प्रकार से हमारा उद्धार ही करती है।
मनुष्य तो बुद्धिमान प्राणी है। उसे तो परोपकार करना ही चाहीए। जो सुख दूसरों की सहायता करने से मिलता है वह अन्य किसी प्रकार से नहीं मिलता। ईश्वर ने यदी हमको काबिल बनाया है, तो हमारा यह कर्तव्य है कि हम दूसरों की सहायता करें।
पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, सभी किसी न किसी प्रकार से हमारे जीवन को सुगम और सफ़ल बनाते हैं। फिर हम तो मनुष्य हैं, ईश्वर ने हाथ, पैर के अतिरिक्त हमें ज्ञान भी दिया है। अतः हमें उस ज्ञान का प्रयोग करके, दूसरों के लिए भी जीना सीखना चाहिए।
परोपकार में ही असली सुख और शांति होती है। हमें अपना जीवन व्यर्थ में नष्ट नहीं करना चाहिये, बल्कि उसको परोपकार द्वारा सार्थक बनाना चाहिए।
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