मंगलवार, 6 नवंबर 2007

गुरू नानक देव जी

कार्तिक की पूर्णिमा ,सन 1526 , का विशेष महत्व है। इस दिन एक महापुरुष का जन्म हुआ था। इस महापुरुष का नाम था नानक । इन की माता का नाम तृप्ता देवी था और पिता का नाम कालूराम मेहता था । इन की जन्म भूमि पंजाब में तलवंडी ग्राम थी । यह बचपन से ही बड़े होनहार थे । ये अरबी, फ़ारसी और संस्कृत के विद्वान थे। परन्तु इनका मन भक्ति व वैराग्य की ओर चला गया था। इनकी यह प्रवृत्ति इनकी पिता की चिन्ता का कारण बन गयी थी।

व्यापार कराने के लिये पिता ने कुछ रुपये देकर सौदा लाने लाहौर भेजा। साथ मे एक सेवक भी कर दिया। रास्ते में कुछ भूख से पीड़ित साधुओं को देख बालक नानक ने उन रुपयों से उन्हे खाना खिलाया और लौट आये। पिता के पूछने पर कह दिया कि सच्चा सौदा किया है।

पिता ने 19 वर्ष की उम्र में उनकी शादी करवा दी। इनका विवह मूलराम पटवारी की कन्या सुलक्षणा से हुआ। इनके दो पुत्र श्रीचन्द और लक्ष्मीदास हुए, जिन्होनें बाद में उदासी मत चलाया । एक रात नदी में स्नान करते हुए उन्हें प्रेरणा हुई कि उन्हें मोह-माया के त्यागकर संसार में आने का अपना मक्सद पूरा करना चाहिये ।इसके बाद वे घर नहीं लौटे परन्तु अपने मुसलमान शिष्य मरदाना के साथ चारों दिशाओं में बारी-बारी गये। पूरब में असाम से पश्चिम में मक्का तक, उत्तर में लेह से दक्षिण में रामेश्वरम तक गुरु नानक ने पद-यात्रा की और शांति का संदेश फैलाया।

गुरू नानक देव जी ने 1596 में 70 वर्ष की अवस्था में यह नश्वर चोला छोड़ दिया और ज्योति-ज्योत समा गये।

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