मंगलवार, 25 सितंबर 2007

एक सुहाना सफ़र ' भाग २ '

घबराहट की वज़ह यह भी थी कि पिछले साल गाड़ी कई बार मरम्मत होने गैरेज गई | अगर किसी सुनसान जगह मे गाड़ी खराब हुई तो बहुत बरी मुसीबत आ जायेगी | कई ऐसे स्थानों मैं सैल्लुलर फोन भी नही काम करते थे | इसीलिये हम ने तै किया कि हम केवल सुर्य आस्थ तक रोज़ चलेंगे और फिर किसी शेहेर मैं रात के लिए रूक जायेंगे | और मोंटाना, वायोमिंग और आइडहो के पहाड़ी इलाक़ों मैं अँधेरा होने पर चलने मैं काफी खतरा है | यह सफ़र तो मनोरंजन का नहीं पर एक इम्तिहान जैसा मालूम हो रह था | फिर भी हमे किसी तरह वाशिंग्टन पहुंचना ही था और सिर्फ चार दिनों में |
आईस कूलर मैं सेन्डविच और सोडा रख कर हम आई - १९६ हाय वे ले कर शिकागो के ओर चले | ग्रांड रेपिड्स से वहां तक का सफ़र पांच बजेह तक पुरा हुआ | शिकागो पहुंच कर दफ्तर से निकलने वाले लोगों के याता-यात मैं लगभग २ घंटे खराब हुए | वैसे तो हम उस दिन सू फाल्स, मिनिसोटा तक पहुंचना चाहते थे पर ऐसा लग रह था कि अँधेरा होने पर केवल लक्रोस, विस्कोंसन तक ही पहुंच पाएंगे |

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