शुक्रवार, 28 सितंबर 2007

अनगिनत सवाले

पढ़ते - पढ़ते मेरे मॅन मे ऐसे बहुत सवाल उठते हैं जिसका जवाब मेरे पास नहीं होता है - हम यहाँ घर से दूर अपने रिश्तेदारों को छोड़कर क्यों आये हैं? जिन्दगी के इस छोटे धागे से मैं अपना जीवन कैसे सी रहां हूँ? जिन लोगो के साथ मेरा नाता बच्च्पन से चलता आ रहा है, क्या इन बंधनो को छोड़कर इतनी दूर चले आना ज़रूरी है? ऐसे ही बहुत सवाल मेरे मॅन को उदासी से भारी कर लेते हैं ।

मैं घर से कोसों दूर अपनी जिन्दगी बनाने के लिये आया हूँ । यह वही घर हैं जिसमे मैं पाल पोसकर बड़ा हुआ हूँ। जिसमे मैंने जिन्दगी के पहले कददम लिये हैं, जिसमे मैं जवान हुआ, जिसमे मेरे परीवार ने मुझे ढेड़ सारा प्यार और खुशिया दी हैं। इस्सी घर को छोड़कर मैं यहाँ अपना घर भसाने चला आया? जिन्दगी के इस भाग-दौड़ में ऐसे सवालो का सामना करने से मैं डरता हूँ। अपने जिन्दगी का रास्ता तो मैंने तये कर लीया हैं, यह भी सूच लीया कि मैं क्या काम करुंगा, काहाँ काम करुंगा, कभ शादी करुंगा। बस, उन्ही लोगो को भूल गया जिनके प्यार में मैंने जिन्दगी देखा हैं - मेरा परीवार। ऐसे बातें हे मेरे तेज गति से चलती हुई ज़िंदगी पर काबू डालती हैं, मुझे छूटे और मीठे पलों में जीने की खासीयत सिखाती हैं। याद दिलाते है मुझे मेरे दिले के छिप्पे हुये बातों की, कि मैं जहाँ रहूँ, मेरा परीवार मेरे साथ है, मेरे पास है ।

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