बुधवार, 24 अक्तूबर 2007

शाहरुख़ ख़ान- भाग 2

उनकी पहली फ़िल्म “दीवाना’ काफ़ी सफ़ल थी पर उनकी दूसरी फ़िल्म माया मेमसाब बहुत लोगों को पसन्द नहीं आयी। 1993 में उन्होंने बाज़ीगर बनायी और यह फ़िल्म मुझे भी बहुत पसन्द है।इसी साल में उन्होंने डर और कभी हाँ कभी ना बनायी और दोनों फ़िल्में भी काफ़ी सफ़ल हुई।1995 में उनकी फ़िल्म दिलवाले दुल्हनिया ले जायेन्गे बॉलिवूड की आज तक की सबसे सफ़ल फ़िल्म रही है और 12 सालों से सिनेमाघरों में चल रही है।
१९९७ में उन्होंने यश चोपड़ा की दिल तो पागल है, सुभाष घाई की परदेश, और अज़ीज़ मिर्ज़ा की येस बॉस जैसी फिल्मों के साथ सफलता पायी और बॉलिवुड में अपनी एक छाप बनायी। 1998 में ही साल उन्हें मणि रत्नम की फ़िल्म दिल से में अपने अभिनय के लिए फ़िल्म समीक्षकों से काफ़ी तारीफ़ मिली और यह फ़िल्म भारत के बाहर काफ़ी सफल रही।1998 में उन्होंए करण जोहार की पहली फ़िल्म कुछ कुछ होता है में काम किया जो बहुत हि सफ़ल रही। इस फ़िल्म के बाद करण जोहर की हर फ़िल्म में उन्होंए काम किया और सभी सफ़ल रही है। 2001 की कभी खुशी कभी गम, 2004 की कल हो ना हो और 2006 की कभी अल्विदा ना कहना।
अगले हफ़्ते में यह कहानी खत्म करुंगा ।
-ॠषित दवे

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