बुधवार, 24 अक्तूबर 2007

वक़्त

मेरा इतना काम है कि मै सो नही पा रहीं हूँ। मुझे बहुत परेशानी हो रही है। सब क्लास्सों में एक न एक प्रोजेक्ट देना है। मै दो दिन से नही सो पाई हूँ। अगले हफ्ते और कठिन है। लग रह है कि मैन जादा क्लास ले लिए हैं। मेरा पास वक़्त ही नही है कि मै बैठके टीवी देखूं । इस सब में मेरी गलती भी है। जब सैटरडे और सन्डे आता है तो मुझे कुछ करने कि इच्छा ही नही होती है। सिर्फ दोस्तों के साथ मिलने कि इच्छा होती है और सोने कि इच्छा होती है। वीकएंड मी कुच्छ काम करने में तबेत खराब होती है। अगर वक़्त को ठीक तरह से बाटो, तो रात रात जागना नहीं पड़ेगा । येः मै सीख चुकी हूँ, लेकिन तब्भी मुक्शील होती है। कॉलेज आसाही है और मै ही सिर्फ नहीं हूँ जो सो नहीं रहा है। जो लोगों को वक़्त बाटना आता है, उन लोगों को इतनी मुश्किलें नहीं होती है।

1 टिप्पणी:

पारुल "पुखराज" ने कहा…

100/ SAHI BAAT...MAGAR KABHI KABHI ANUSHAASAN HINTAA BHII MAZAA DETI HAI..KHAASKAR SATURDAYS N SUNDAYS....