मंगलवार, 2 अक्तूबर 2007

राष्ट्रपिता महात्मा गान्घी

सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी का नाम बच्चे बच्चे की ज़बान पर है। इनकी वाणी में जादू था जिससे हमारा विश्व प्रभावित हुआ। हम लोग भारत में आज जो स्वतंत्रता की सांस ले रहे हैं, इन्ही के प्रताप से है।

अंग्रेज़ी शासन काल मे गदर के बाद भारतीयों पर दमन चक्र चला,सभ्यता और संस्कृति का संघार होता गया। ऐसी परिस्तिथियों के बीच राष्ट्रपिता मोहनदास कर्मचन्द गाँधी का जन्म दो-अक्तूबर,1869 को गुजरात काठियावाड़ प्रांत के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ।उनकी माता ,पुतलीबाई, सरल प्रवृत्ति की ,एक धार्मिक महिला थीं।उनके पिता कर्मचन्द,रियासत के दीवान थे।

इनकी प्रारम्बिक शिक्षा राजकोत मे हुई। अभी मैट्रिक मे ही थे जब तेरह वर्ष की आयु में इनका विवाह कस्तूरबा से हो गया। मैट्रिक के बाद सन 1887 मे ये बैरिस्ट्री करने इंग्लैंड गये। सन 1891 मे ये बैरिस्ट्री करके लौते। संकोची व सत्यवादि होने के कारण इन्हें सफलता प्राप्त न हो सकी।सन 1893 मे ये एक मुस्लिम व्यापारी की पैरवी करने के लिये दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। वहां पर अंग्रेज़ों की जाति भेद, अपमान और यातनाएं सहन न कर सके। आंदोलन और सत्याग्रह मे टूट पड़े। सन 1914 में सफलता मिली और वे स्वदेश लौटे।

गाँधीजी जब स्वदेश लौटे तो प्रथम महायुद्ध छिड़ चुका था। इसमें भारतीयों ने धन और तन से अंग्रेज़ों की सहायता की पर अंग्रेज़ों ने स्वराज के वचन देकर तोड़ दिया। सन 1920 के असहयोग 1930 के नमक कानून तोड़ो आंदोलनों से अंग्रेज़ कांप उठे। इस बीच गाँधीजी और उनके सहयोगियों को कई बार बंदीगृह मे रहना पड़ा ।

भारत मे छुआछूत को देखकर इनका मन व्याकुल हो उठा। इसको मिटाने के लिये इन्होंने कई आंदोलन किये। फलतः मंदिरों के द्वार इनके लिये खुल गये।

सितम्बर 1937 मे द्वितीय महायुद्ध मे भारतीयों की सम्मति के बिना सेना को ब्रिटेन की रक्षा के लिये भेजा गया। इससे राष्ट्रीय नेता बिगड़ गये असेम्बली त्याग दी । पुनः आंदोलन हुए ,क्रांति हुई ,भारतीयों ने कई बलिदान दिये। इससे अंग्रेज़ों के पांव दगमगा गये। गाँधीजी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों के आगे अंग्रेज़ों को झुकना पड़ा। 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली और इनका सपना पूरा हुआ।

30 जन्वरी 1948 की संध्या को बिरला भवन की प्रार्थना सभा में नाथूराम गोड्से ने इन्हें गोली का शिकार बनाया।

वे आज हमारे बीच नहीं हैं पर हमें सत्य , अहिंसा ,एकता और सादगी के सिद्धांतों पर चलने की शिक्षा व साहस विरासत मे दे गये हैं।

1 टिप्पणी:

Srijan Shilpi ने कहा…

हम भी अपने स्कूली दिनों में पहुंच गए, जब महात्मा गांधी पर इसी तरह के निबंध लिखा करते थे।

हिन्दी के शिक्षार्थियों को यह ब्लॉग शुरू करने के लिए बधाई!

आशा है, आप सभी नियमित रूप से लिखा करेंगे और अपने विषयों में विविधता लाएंगे।


हार्दिक शुभकामना है आप सभी ऐसी हिन्दी सीखें जो दिल की बात को जुबान पर सहजता से ले आए।