बुधवार, 24 अक्तूबर 2007

हिन्दी गाने

घर छोड़ यहाँ महत्मविद्याल्या आने के बाद मैंने जितना हिन्दी गाना पसंद करना शुरू किया है, वह पहले से बहुत गुना ज्यादा है। अजीब बात है कि जहा हिन्दी कलाकारों की आवाज हर घर ग्राहस्ती में शामिल होता हैं, मैं उस ही देश में न तो हिन्दी गाने पसंद करता था और ज्यादा सुनता भी नहीं था । यहाँ आने के बाद, मैं हुम्शे हिन्दी गानों के गीत गुनगुनाता रहता हूँ और अपने दोस्तो कि साथ संगीत का मजा लेता हूँ। हर सोमवार कि रात जब हम दोस्त लोग मौज मस्ती करने के लिए मिलते हैं तो गानों का बंदवस्त जरूर होता हैं - हम में से एक अपना कंप्यूटर ले आकर पुराने और नए गानों को छेड देता हैं। हिन्दी गानों कि बात ही कुछ और है - इतनी मधुर, मतलब में दिल को चूने देने वाली - पता नहीं मैंने अब तक इन गानों को पसंद क्यों नहीं कीया! अंत में मैं अपने पसंदी का एक गाने के कुछ शब्दों को यहाँ प्रस्तुत करना चाहूँगा -

मेरे मन यह बता दे तू
किस और चला है तू
क्या पाया नहीं तुने
क्या धुंद रहां है तू
जो हैं अनकही, जो हैं उन्सुनी,
वह बात क्या है बता, मितवा....

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