मिसुला मैं आज चोथी दिन कि सुबेह हुई | आज हमारे लंबे सफ़र का आंत होने वाला था | नाश्ता कर के और दो कप काफी पीकर हम दोपहर होने से पहले निकल पडे | आज और दिनों के मुक़ाबले हमे कम ही चलना था | मलुमं पड़ा कि मिसुला से सियाटल का सफ़र केवल सात घंटों मैं पुरा किया जा सकता है |
मिसुला मोंटाना के पश्चिमी तट पर मौजूद है | यहाँ से निकल कर मोंटाना मैं केवल ७० मील बचे थे | अभी तो हम छोटे पहाड़ों मैं ही थे | बॉर्डर पार कर हम आइडहो मैं घुसे | इससे पार करने मैं केवल १५० मील ही थे पर यह हमारे सफ़र का सबसे कठिन भाग था | आइडहो मैं घुसते ही हम तेज़ी से रोक्की पहाड़ों के ऊपर चढ़ने लगे | सड़क आब ऊंच - नीच बराबर से करती और पहाड़ों के चोटियों पर साँपों के तरह लिपटी दिखाई पड़ती | आते जाते शेहेर और भी छोटे मलुमं पड़ते जिधर आबादी और भी कम होती | यहाँ हम केवल गैस भरने रुके | इन् पहाड़ों के बीचों बीच एक समय पर हमारी ऊंचाई ६००० फ़ीट तक पहुंच गये थी | याहा हवा पतली थी , पहले -पहले सांस लेने मैं इसका फर्क को पहचाना हमने और बाद मैं तो हम फिर पहाड़ों से उतरने लगे |
पहाड़ों से निकल कर हम आखरी जिला वाशिंग्टन मैं घुसे | याहा घुसते ही पुर्वी बॉर्डर मैं वाशिंग्टन के सियाटल के बाद का शेहेर स्पोकान मैं घुसे | यह काफी बड़ी शेहेर मलुमं हुई आख़िर सियाटल के बाद उसी का नाम था | स्पोकाने के आगे करीब १५० मील तक केवल खुली जमीं और खेती दिखाई दी | ऐसा लग ही नही रह था कि कुछ ही देर पहले हम रोक्कियों के ऊपर मौजूद थे | पिछे, पुर्व के ओर देखने पर भी नही दिखते |
मंगलवार, 9 अक्तूबर 2007
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