जो हमारी अज्ञानता को दूर कर हमारे जीवन में ज्ञान रूपी प्रकाश लाता है, वही हमारा गुरू होता है। बालक के प्रथम गुरू उसके माता पिता होते हैं, जो बालक को सर्वप्रथम शिक्षा प्रदान करते हैं। तत्पश्चात, बालक विद्यालय जाता है, और उसके ज्ञान का विकास उसके गुरू के द्वारा होता है। विद्यालय में गुरू छात्र को सुशिक्षा, सुसंस्कार और विनम्रता तो प्रदान करते ही हैं, साथ में उसे अनेक विषयों का ज्ञान भी देते हैं, जिस से आगे चल कर छात्र अपना भविष्य चुन सकें। गुरू से अर्जित ज्ञान से ही कोई इन्जिनियर, कोई डाक्टर, कोई नेता, तो कोई अभिनेता बनता है। इस प्रकार लोग अपनी रुची के अनुसार अपना भविष्य चुन सकते हैं।
ईश्वर द्वारा प्राप्त गुणों का विकास गुरू के द्वारा ही होता है। संगीत, कला, तथा विज्ञान के क्षेत्र में जो बहुत आगे पहुच चुके हैं, उनकी सफ़लता भी उनके गुरू के कारण ही है। प्राचीन काल में तो गुरू को अत्यंत आदरणीय माना जाता था। जब महाभारत में अर्जुन से उसका परिचय मांगा गया था, तो उसने कहा कि वह द्रोण-शिष्य अर्जुन है, और, केवल गुरू ही छात्र का परिचय होता है।
बिना गुरू कोई भी यश नहीं प्राप्त कर सकता। गुरू हमारे ज्ञान को दिशा प्रदान करते हैं। गुरू हमारी योग्यता को पहचानते हैं, और उस ही के अनुसार हमें कार्य करने की प्रेरणा देते हैं। गुरू की महिमा का जितना बखान किया जाए, कम है।
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