सोमवार, 8 अक्तूबर 2007

जीने की इच्छा

"जिन्दगी एक सफ़र हैं सुहाना, यहाँ कल क्या हो किसने जाना" - इसी गाने को लेकर मेरे मन में बहुत सारे सवाल उठे। क्या मेरे तरह सभी अपने जीवन को लेकर यह गाना सच्चे दिल से गा सकते हैं? इस सवाल का जवाब नहीं हैं यह तो मैं जानता हूँ, लेकिन इस गम्भीर सवाल का इतना आसान जवाब का कारण में नहीं जानता। भाग्वान् ने हर मनुष्य को एक समान बनाया हैं और जीने का तौफा दिया हैं। हम सब ने इस दुनिया मै जनम एक ही रास्ते से लीया है। फिर हम सब के जिन्दगी में इतना अंतर क्यों हैं? ऐसा क्यों हैं कि हज़ारो में से मुठी भर लोग के जीवन में खुशिया हैं, सफलता प्राप्त करने की इच्छा हैं? जिन्दगी के इस भाग दौड़ में हम अपने आप से ऐसे सवालो के लिये जवाब खोजना ही भूल गाये हैं। यह दुनिया मनुष्य को सद्दियो से बस्स देता आ रहा हैं - हमारा इस धरती पर एक बहुत बड़ा एहसान हैं। इस विशाल और लुभावना दुनिया में हर कदम पर जीने कि इशारे मिल सकते हैं - हमारा कर्तव्य बनता हैं कि हम एक दुसरे को इन कदमो का महसूस दिलाये और जीने की इच्छे को वापस जगाये।

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