अगले दिन सुबहे ७:३० बजे ओरिंटेशन के लिए सियाटल जाना पड़ा | सूबे कि याता यात मैं फसे लगा कि समय पर नहीं पहुँच पाऊँगा | १५ मिनट लेट होने के बावजूद ओरेंटेशन हॉल में आने दिया गया मुझे | वैसे तो वहा कुछ खास नहीं हुआ | मेरी तस्वीर खीची गये और मेरा बैज मुझे दे दिया गया | वहाँ पर बड़े होल मैं काफी नए लोग थे जो अपने पहले दिन की शुरुआत के लिए उत्सुकता से इंतज़ार कर रहे थे | इनमे से मैं भी एक था | इन लोगों मैं मानेजर, इंजिनियर , फैक्ट्री वर्कर्स और साफ सफ़ाई करने वाले कर्मचारी एक ही साथ बैठे थे | सब लोग वहा एक समन ही थे | भेद भाव जैसी चीज़ वहा थी ही नही | हॉल मैं अनेक छोटे टेबलों मैं लगभग छे - सात लोग बेठे थे | अपने टेबल पर मेरे स्थान पर मेरे नाम का लिफाफा रखा था जिसमे मेरे अस्सिनेमेंट लेटर और बैज था | इससे ले कर मैं सियाटेल से एवेरेट चला गया | बैज होने के वज़ह से आब मैं अपने बिल्डिंग के अन्दर जा सकता था | वैसे तो मुझे अगले दिन अपने मनेजर को रिपोर्ट करना था पर मैं आपना डेस्क आज ही खोज लेना चाहता था |
वापस एवेरेट जाते वक़्त ऐसा लगा कि भले सियाटेल कितनी भी सुंदर जगहें हो आब मुझे यहाँ नही आना पड़ेगा |
ये रोज़ का रोक टोक और बड़े शेहेर के अन्य झंझट नहीं झेलने पड़ेंगे | आब तो दफ्तर मेरे अपार्टमेंट से मात्र पाँच मिनेट ही की दुरी पर था |
सोमवार, 29 अक्तूबर 2007
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