ब्रह्माण्ड का कण-कण परिवर्तनशील है। हमारे शरीर के पुराने सैल नष्ट हो जाते हैं और उनकी जगह नए सैल ले लेते हैं। यह तो हमारी देह की स्थिति है, हमारी आंतरिक स्थिति में और व्यक्तित्व में भी पल-पल परिवर्तन होता रहता है। मानव पुराने वस्त्र छोड़कर नए वस्त्र धारण करता है, पुराना घर छोड़कर नए घर में जाता है, और भी बहुत सी पुरानी वस्तुओं की स्थान पर नई वस्तुओं की इच्छा करता है। यह परिवर्तन आवश्यक है और जो इसको जीवन से दूर रखना चाहता है वह जीवन को बन्दी के रूप में रखना चाहता है।
जो मानव परिवर्तन का पहले से ही अनुमान लगा लेता है वही अपने आप को परिस्तिथियों के हिसाब से ढालकर सफल होता है। इससे वह सशक्त बनता है। कई बार जीवन मे कुछ ऐसी घड़ियां आ जाती हैं जब कोई नई घतना नहीं घटती,तब ऐसा लगने लगता है कि जीवन स्थिर हो गया है। इससे मानव ऊकता है। परिवर्तन के आने से ही जीवन आगे बढ़ता है फिर चाहे यह परिवर्तन शुभ हो या अशुभ।यही परिवर्तन ही जीवन में नए उत्साह की, नए साहस की लहर लाता है।
परिवर्तन का सामना करने का सर्वोत्तम उपाय है कि उसका स्वागत किया जाए। बीते युग का मोह त्यागने से ही मानव ऐसी स्थिति में आ सकता है।एक पुरुष से पूछा गया कि तुम में ऐसी महान शक्ति कैसे आगयी तो उसका उत्तर था कि वह अपना तनिक भी समय बीते वक्त के पछतावे में नष्ट नहीं करता । पुराना जाता है तभी नया आ सकता है ,यही संसार का नियम है,सृष्टि का नियम है।
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