मंगलवार, 2 अक्तूबर 2007

प्रदूषण

आज के विकसित, आधुनिक युग में प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। मनुष्य, पशु-पक्षी, वनस्पतियाँ, सभी इस से प्रभावित हो रहे हैं। यहाँ तक कि ॠतुओं पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है। विश्व के लिये प्रदूषण एक गंभीर समस्या का विषय बना हुआ है। विभिन्न देशों के वैज्ञानिक इस समस्या के समाधान ढ़ूँडने के लिये अपने-अपने तरीके से प्रयास कर रहे हैं।

प्रदूषण चाहें वायु का हो या जल का, दोनों ही घातक हैं। विज्ञान के विकास के साथ बिजली की बढ़ोतरी हुई। बिजली के लिये पावरहाउसों की संख्या बढ़ी। व्यापार के लिये कल-कारखाने बढ़े, जिनकी चिमनियों से निकलने वाले धूँए ने वातावरण को प्रदूषित किया। घर में चलने वाले विद्युत यत्रों तथा वातनुकूलित यंत्रों से निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसों के कारण भी वातावरण प्राभावित हो रहा है। बड़े-बड़े व्यापारिक शहरों में प्रदूषण का स्तर और भी बढ़ता जा रहा है। इन शहरों में गाड़ियों, बसों और ट्रकों की संख्या अधिक है। पेट्रोल और डीज़ल से उतपन्न धूँए से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिये, भारत में सी.एन.जी. का प्रयोग भी किया जा रहा है।

हमारे वन प्रकृति की धरोहर हैं। पेड़-पौधे वायु को शुद्ध करने में हमारी सहायता करते हैं। वन के पेड़ कटते जा रहे हैं और मनुष्य प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। इन सब का असर मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है और नए-नए रोग उतपन्न हो रहे हैं। प्रदूषण को रोकने का प्रयास वैज्ञानिक तो कर ही रहे हैं परंतु हर मनुष्य का कर्तव्य है कि वह प्रदूषण को रोकने का पूरा प्रयत्न करे।

कोई टिप्पणी नहीं: