मोंटाना, को भालुओं का जिला कहा जाता है | इस जिला मैं रोकी पर्वत, जंगल, झीलें और कई तरह के प्राकृतिक सुन्दरता मौजूद हैं | वैओमिंग से निकल कर मोंटाना मैं पूर्वी दिशा से हम घुसे | आई-९० से ही हमने अगले ५०० मील मैं मोंटाना को देखा और उसकी सुन्देर्ता को अनुभव किया | रासते मैं बिल्लिंग्स मैं दिन का खाना और कुछ देर आराम करने रुके | घने बादल छाने लगे और ऐसा लगा कि कुछ देर मैं वर्षा होने वाली है | घने बादल पूर्व से पशचिम की ओर बढ़ रहे थे | हम बिल्लिंग्स से फोरेन निकले और पश्चिम के ओर तेजी से बढने लगे | हम बादलों को तो नही हरा सकते पर किस्मत अच्छी थी कि वेह उत्तर-पश्चिम की ओर जाते मलुमं होने लगे | बाद मैं मालुमं हुआ कि उन बादलों ने घनघोर बारिश करवा दी थी | पहाड़ी इलाके मैं इतने बारिश मैं चलना सुरक्षित नहीं होता |
शाम होने पर हमने बोस्मन को पर किया | पुरी तरेह से अँधेरा नही हुआ था तो हम चलते रहे | इस वक़्त हमे मिसुला पहुँचने के लिए १०० मील और चलना बाकी था | याहा हम यात्रा की तीसरी रात गुजरने रुके। मिसुला मलुमं पड़ा कि एक चोटी सी शेहेर जो पहाड़ों के ऊपर स्थित थी | याहा की आबादी भी और शेहेरों के मुक़ाबले मैं कम थी | याहा युनिवर्सिटी होने के वज़ह से छात्रों की आबादी बहुत आधिक मिलती | अन्य कालेज वाले शहरों के तरह यहाँ हर मोड़ पर कोफ़ी शाप मिलते जिनमे छात्रों को कोफ़ी पीते और अपने लेप-टाप खोले और व्यस्त दिखते | इससे देख कर मुझे कुछ हद ताख एंन अर्ब्र कि याद आ गई |
मंगलवार, 9 अक्तूबर 2007
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें