बुधवार, 3 अक्तूबर 2007

हॉस्टेल की ज़िन्दगी

हॉस्टेल की ज़िन्दगी

मैं मुम्बई में अपने माता, पिता और छोटे भाई के साथ रह्ता था उन्नीस की उम्र तक्।इतनी साल माता पिता के साथ रहने के बाद अब मिशिगन में आकर अकेले रहने का अनुभव अनोखा और अजीब है।

पहले थोडे दिन अकेले रहने के बाद मुझे ऐसा लगा कि यह ज़िन्दगी कितनी अछी है। अकेले रहकर मुझे लगा कि मेरा खुद पर विश्वास बढने लगा और उसके साथ मेरा आत्मसम्मान भी।ऐसा लगा कि अब मैं खुद के सारे काम कर सकता हू। यह ज़िन्दगी मुझे आज एक साल के बाद भी उतनी ही पसन्द है लेकीन कई बार मुझे घर कि बहुत याद आती है।

हॉस्टेल में रहने कि बात इसलीये अलग है क्योंकि हम अलग अलग देशों के लोगो के साथ रह सकते है। नयी चीज़े सीख सकते है और नये दोस्त बना सकते है। हा लेकिन खाना तो बिलकुल खास नहीं है लेकिन इस साल मेरा रूम मेट ॠषित बहुत अच्छा खाना बनाता है। और वैसे भी खुद पकाकर खाना खाने में कुच्छ खास ही बात है।

में यह नहीं कहूँगा कि असली घर में रहने में मज़ा नही आता है। कॉलेज़ से निकलने के बाद में अपने माता पिता के साथ ही रहना चाहता हू लेकिन हॉस्टेल में रहने की बात भी अलग ही है।मैं सिर्फ़ इतना ही कहना चाहता हू कि हर व्यक्ति को हॉस्टेल के जीवन को अनुभव करना चाहिए।

-शमिन असयकर

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