प्रत्येक मनुष्य सुख और शांति में रहना चाहता है, पर किसी को शांति नहीं मिलती। वास्तव में शांति सिर्फ़ ज्ञानी व्यक्ति को सद बुद्धि धारण करने वाले को, और ईश्वर में आस्था रखने वालों को मिलती है।
सुख और शांति मात्र धन दौलत से नहीं मिलती। सुख शांति तो संतोष और विद्या से मिलती है। विद्वान व्यक्ति अभिमान नहीं करता है, और सदैव ही विनम्र होता है। वह किसी को दुख पहुँचाने वाली बात नहीं करता और किसी का अपमान नहीं करता। ऐसा व्यक्ति ही सुख शांती का अर्थ समझता है।
महात्मा बुद्ध और महावीर जी को राज-पाठ के ऐशो-आराम में सुख नहीं मिला। इन महाव्यक्तियों को तो दूसरों के दुख को दूर करने में सुख मिला और वे अपना राज-पाठ त्याग कर समाज को सुख शांति का रहस्य बताने के लिए निकल पड़े।
सुख और शांति अपने मन में ही निहित है। हम यदि अपनी इच्छाओं को वश में कर लें, दूसरों की मदद करें सबके प्रति प्रेम भाव रखें और अहंकार न करें तो हम सुख प्राप्त कर सकते हैं। इसीलिए विद्वान व्यक्ति सुख और दुख को समान रूप से अनुभव करता है। सुख और शांति नम्रता धारण करने में है और परोपकार में दीन-हीन के प्रति करूणा का भाव रख़ने में है। सुख और शांती क्षमा करने में है। अक्सर लोगों को अपनी बुराई और दूसरों की अच्छाइयाँ दिखाई नहीं देती। जिस दिन मनुष्य को अपनी बुराई दिखाई देने लगेगी, उसका मन सुख और शांति का अनुभव करने लगेगा।
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