चार साल पहले जब मै अपनी आई-आई-टी की पढाई कर रहा था तब मेरे मन में भारतीय पढाई-लिखाई के प्रति बहुत नफ़्रत जग उठी। तीन लाख विद्यार्थी इस परिक्षा का सामना करते थे और सिर्फ़ 4000 को इसमें जगह मिलती थी। फ़िर जब मैने अमरीका की ओर देखा तो मुझे इस बात का एह्सास हुआ कि यह एक जगह है जो सबको मौका देती है। मुझे गलत मत समझिये।भारत मेरे लिये सबसे प्रीय है लेकीन इसका मतलब यह नहीं होता कि मैं उसके दुर्गुणों को नहीं देखू। मेरे हिसाब से पढाई-लिखाई में भारत अभी बहुत पीछे है।
चलो खेल कूद की बात लेते है। ओलिम्पिक खेलों में अमरिका ढेर सारे स्वर्ण्पदक हर बार ले जाती है। भारत ने पिछले खेलों में सिर्फ़ एक पदक जीता है। लेकिन इसके दोश हम भारतीय खिलाडियों को नही दे सकते है।भारतीय सरकार सिर्फ़ क्रिकेट के लिये पैसे इकट्ठ करती है और बाकी अन्गिनत खेलों की तर्फ़ देख्ती भी नही है। आज कल हॉकी, फ़ुट्बॉल और टेनिस की लोकप्रियता बहुत ही तेज़ी से बढ रही है। शायद जब सरकार जब इन खेलों के लिये कुछ सुविधायें उपलब्ध करेंगी तब हम जाकर कुछ जीतेंगे।
फ़िर लेते है गरीबी की बात। अमरीका को आज़ादी मिले करीबन ढाई-सौ साल हो गये है।इनका देश भी बहुत बडा है और लोकसन्ख्या कम है। इसी कारण यह देश खुद के लिये बहुत अच्छा कर रहा हैं। भारत भी बहुत तेज़ी से बढ रहा है।सेन्सेक्स भी बहुत जल्दी 20000 तक पहुच जायेगा।रास्ता बहुत लंबा और कठिन है लेकिन मुझे लगता है कि अगर हम सब भारतीयों लोग एक साथ आकर प्रार्थना करे तो नामुंकिन को मुंकिन कर सकते हैं।
-शमिन असयकर
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