अनुशासन ही एक ऐसा गुण है, जिसकी मानव जीवन में पग पग पर आवश्यकता पड़ती है। अतः इसका आरम्भ जीवन में बचपन से ही होना चाहिये। इसी से ही चरित्र का निर्माण हो सकता है। अनुशासन ही मनुष्य को एक अच्छा व्यक्ति व एक आदर्श नागरिक बनाता है।
वास्तव में अनुशासन-शिक्षा के लिये विद्यालय ही सर्वोच्च स्थान है। विद्यार्थियों को यहाँ पर अनुशासन की शिक्षा अवश्य मिलनी चाहिये। उन्हें गुरुओं की आज्ञा का सदा पालन करना चाहिये। अनुशासनप्रिय होने पर ही विद्यार्थी की शिक्षा पूर्ण समझी जा सकती है। पाश्चात्य देशों में भी शिक्षा का उद्देश्य जीवन को अनुशासित बनाना है। अनुशासित विद्यार्थी अनुशासित नागरिक बनते हैं, अनुशासित नागरिक एक अनुशासित समाज का निर्माण करते हैं, और एक अनुशासित समाज पीढ़ियों तक चलने वाली संस्कृति की ओर पहला कदम है।
अनुशासन का पाठ वास्तव मे प्रेम का पाठ होता है ,कठोरता का नहीं। अतः इसे प्रेम के साथ सीखना चाहिये । बालक को अनुशासन का पाठ पढ़ाते समय कु्छ कठोर कदम उठाने आवश्यक हैं परन्तु इससे रहित रखकर हम बालक को अवश्य ही अवनति की ओर ढकेल देंगे। गाँधीजी ने भी कहा था कि अनुशासन ही आज़ादी की कुंजी है।
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2 टिप्पणियां:
सही कहा आपने। बाहरी अनुशासन अंतः अनुशासन की पहली सीढ़ी है।
sabse achcha paragraph maine aaj tak nahi dekha thank uuuuuuuuuuu
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